क्या आपने कभी यह उक्ति सुनी है, “उकसानेवालों को बढ़ावा न दें” (Don’t feed the trolls”) l “ट्रोल्स” आज के डिजिटल संसार में एक नयी समस्या की ओर इशारा करता है – ऑनलाइन यूजर जो ख़बरों या सोशल मीडिया चर्चा समिति के बारे में बार-बार इरादतन विद्रोहजनक और हानिकारक टिप्पणियाँ पोस्ट करते रहते हैं l परन्तु ऐसे टिप्पणियों को नज़रंदाज़ करना – उकसानेवालों को बढ़ावा न देना – उनके लिए किसी संवाद को पटरी से उतारना कठिन बना देता है l

अवश्य ही, ऐसे लोगों का सामना करना कोई नयी बात नहीं है जो असलियत में उत्पादक संवाद में रूचि नहीं रखते हैं l “उकसानेवालों को बढ़ावा न दें” नीतिवचन 26:4 का आधुनिक समतुल्य हो सकता है, जो चेतावनी देता है कि अभिमानी, ग्रहण न करनेवाले के साथ बहस करना, उनके स्तर तक नीचे उतरने का जोखिम है l

और इसके बावजूद . . . सबसे अड़ियल दिखाई देने वाला व्यक्ति भी परमेश्वर की छवि का अमूल्य धारक है l यदि हम दूसरों को ख़ारिज करने में जल्दबाज़ है, हम अभिमानी और परमेश्वर के अनुग्रह को अस्वीकार करनेवाले बन जाने के खतरे में हो सकते हैं (देखें मत्ती 5:22) l 

वह, कुछ हद तक स्पष्ट करता है क्यों नीतिवचन 26:5 बिलकुल विपरीत मार्गदर्शन पेश करता है l यह हर एक स्थिति में सर्वश्रेष्ठ तौर से प्रेम प्रगट करने का निर्णय है क्योंकि यह परमेश्वर पर दीन, प्रार्थनामय भरोसा से ही संभव है (देखें कुलुस्सियों 4:5-6) l कभी हम जोर से बोलते हैं, और दूसरे समयों में, शांत रहना ही उत्तम है l

परन्तु हर एक स्थिति में, हम यह जानने में शांति पाते हैं कि वही परमेश्वर जो हमें अपने निकट लाया जब हम उसके प्रति कठोर विरोधी थे (रोमियों 5:6) हर एक व्यक्ति के हृदय में सामर्थी रूप से कार्य कर सकता है l जब हम मसीह के प्रेम को साझा करने का प्रयास करते हैं हम उसकी बुद्धिमत्ता में विश्राम करें l