“आप दूसरे के स्थान पर रखे जा रहे छात्र होंगे!” मैं सत्रह वर्ष का था और यह सुनकर मैं बहुत खुश हुआ कि मुझे जर्मनी में अध्ययन करने की स्वीकृति मिल गयी थी l परन्तु यह मेरे प्रस्थान से केवल तीन महीने पहले हुआ था, और मैंने जर्मन भाषा कभी नहीं पढ़ी थी l

उसके बाद के दिनों में मैंने खुद को अत्यधिक पढ़ने और सीखने का प्रयास करते हुए पाया – घंटों पढ़ाई करना और शब्दों को याद करने के लिए अपनी हथेली पर भी लिखना l

महीनों बाद मैं जर्मनी में एक कक्षा में था, हतोत्साहित क्योंकि मैं उस भाषा को अधिक नहीं जानता था l उस दिन एक शिक्षक ने मुझे एक बुद्धिमान सलाह दी l “किसी भाषा को सीखना रेत के एक टीले पर चढ़ने की तरह है l कभी-कभी आपको महसूस होगा कि आप आगे कहीं भी नहीं पहुँच रहे हैं l परन्तु आगे बढ़ते रहें और आप सफल हो जाएंगे l”

कभी-कभी मैं उस अंतर्दृष्टि पर चिंतन करता हूँ जब मैं विचार करता हूँ कि यीशु के शिष्य की तरह बढ़ने का अर्थ क्या होता है l प्रेरित पौलुस ने याद किया, “सब दशाओं में मैं ने तृप्त होना . . . सीखा है l” पौलुस को भी, व्यक्तिगत शांति रातोंरात नहीं मिली l पौलुस उसमें बढ़ता गया l पौलुस ने अपनी प्रगति का रहस्य साझा करता है : “जो मुझे सामर्थ्य देता है उसमें में सब कुछ कर सकता हूँ” (फिलिप्पियों 4:13) l

जीवन की अपनी चुनौतियां हैं l परन्तु जब हम उसकी ओर उन्मुख होते हैं जिसने “संसार को जीत लिया है” (यूहन्ना 16:33), हम केवल यह नहीं पाते हैं कि वह हमें पार लगाने में विश्वासयोग्य है परन्तु यह कि उसकी निकटता से बढ़कर कुछ नहीं है l वह हमें अपनी शांति देता है, भरोसा करने में सहायता करता है, और उसके साथ तय दूरी चलने में समर्थ बनाता है l