ब्रायन को अपने भाई की शादी में स्वागतकर्ता बनना था, परन्तु वह कर्तव्य से भागनेवाला व्यक्ति था l सुस्पष्ट ढंग से, परिजनों के साथ उसकी बहन जैसमीन भी निराश थी जिसे उस अवसर पर बाइबल पढ़ना था l समारोह में बिना कोई गलती किये हुए उसने 1 कुरिन्थियों 13 से प्रेम के बिषय बाइबल का परिच्छेद पढ़ा l परन्तु विवाह के बाद जब पिता ने उससे ब्रायन को जन्मदिन का उपहार देने के लिए कहा, वह हिचकिचा गयी l उसने प्रेम के विषय शब्दों को पढ़ने से अधिक उसे व्यवहार में लाने को कठिन महसूस किया l रात आने से पूर्व, हालाँकि, उसने मन को बदलकर स्वीकार किया, “मैं खड़ी होकर प्रेम के विषय वचन पढूँ और उसका अभ्यास न करूँ, यह हो नहीं सकता है l

क्या कभी आपने वचन को पढ़ा हो या सुना हो और वचन द्वारा दोष भावना को महसूस किया हो या उसका अभ्यास करने में कठिनाई महसूस की हो? आप अकेले नहीं हैं l परमेश्वर के वचन को पढ़ना और सुनना उसका पालन करने की अपेक्षा सरल है l इसीलिए याकूब की चुनौती इतनी सटीक है : “वचन पर चलनेवाले बनो, और केवल सुननेवाले ही नहीं जो अपने आप को धोखा देते हैं” (याकूब 1:22) l दर्पण वाला उसका उदाहरण हमें मुस्कुराने को विवश करता है क्योंकि हम जानते हैं कि अपने विषय कुछ बातों पर ध्यान देना जिस पर ध्यान देना अनिवार्य है का क्या अर्थ होता है l परन्तु हम धोखा खाते हैं यदि हम सोचते हैं कि ध्यान देना ही पर्याप्त है l जब याकूब हमसे “जी लगाकर [ध्यान] देने” और परमेश्वर की सच्चाई को “[निरंतर] पालन करने के लिए प्रेरित करता है (पद.25), वह हमें वही करने को उत्साहित करता है जो जैसमीन करने को विवश थी – जीने को विवश थी l परमेश्वर का वचन यह करने को बुलाता है, और वह इससे कम के योग्य नहीं है l