एक डैनिश फिल्म बैबेट फीस्ट (Babette’s Feast) में, एक तटीय गाँव में एक फ्रांसीसी शरणार्थी दिखाई देता है l समाज के धार्मिक जीवन की अगुआई करनेवाली, दो वृद्ध बहनें, उसे अपने घर के भीतर ले जाती हैं और चौदह वर्ष के लिए बैबेट उनकी सेविका के रूप में काम करती है l जब बैबेट ढेर सारा पैसा कमा लेती हैं वह बारह लोगों की मंडली को अपने साथ असाधारण फ्रांसीसी भोजन और बहुत कुछ और खाने को आमंत्रित करती है l

एक भोजन खाने के बाद दूसरा भोजन खाना आरंभ करते के दौरान, अतिथि सुस्ताते हैं; कुछ लोग क्षमा पाते हैं, कुछ प्रेम को फिर से जागृत पाते हैं, और कुछ लोग उन आश्चर्यक्रमों को याद करने लगते हैं जो उन्होंने देखे थे और सच्चाइयाँ जो उन्होंने बचपन में सीखे थे l “याद करें कि हमें क्या सिखाया गया था?” वे कहते हैं l “छोटे बच्चे, एक दूसरे से प्यार करो l” जब भोजन समाप्त होता है, बैबेट बहनों को बताती है कि उसने भोजन पर अपना सब कुछ खर्च दिया l उसने सब कुछ दे दिया – जिसमें पेरिस में प्रसिद्द रसोइया के अपने पुराने जीवन में लौटने का कोई अवसर भी शामिल था – इसलिए कि भोजन खाने वाले उसके मित्र अपने हृदयों को खुला महसूस कर सकें l

यीशु धरती पर एक अजनबी और सेवक के रूप में आया, और उसने सब कुछ दे दिया ताकि हमारी आत्मिक भूख संतुष्ट हो जाए l युहन्ना रचित सुसमाचार में, वह अपने सुननेवालों को याद दिलाता है कि जब उनके पूर्वज मरुभूमि में भूखे भटक रहे थे, परमेश्वर ने बटेर और रोटी का प्रबंध किया (निर्गमन 16) l उस भोजन ने थोड़े समय के लिए संतुष्ट किया, परन्तु यीशु प्रतिज्ञा करता है कि जो उन्हें “जीवन की रोटी” के रूप में ग्रहण करते हैं “हमेशा तक जीवित रहेंगे” (युहन्ना 6:48, 51) l उसका बलिदान हमारी आत्मिक लालसा को संतुष्ट करता है l