भारत के एक व्यक्ति ने, अपनी सुखी, रेतीली उसर भूमि को उपजाऊ बनाने के लिए लगभग चार दशक से अधिक, तक मेहनत किया l यह देखते हुए कि अपरदन और परिवर्तनीय परितंत्र(ecosystem) ने नदी के निकट उसके प्रिय द्वीप को किस तरह नष्ट कर दिया था, उसने एक एक करके पेड़ लगाना शुरू किया, बाँस के पौधे फिर कपास के पौधे l वर्तमान में, 1,300 एकड़ से अधिक भूमि हरे-भरे जंगल और पर्याप्त वन्य-जीव से भरपूर है l हालाँकि, उस व्यक्ति का मानना है कि उसके द्वारा पुनर्जीवन संभव नहीं हुआ l प्राकृतिक संसार जिस अद्भुत तरीके से अभिकल्पित है, को पहचानते हुए, वह आश्चर्यचकित होता है कि किस प्रकार बीज वायु द्वारा उपजाऊ भूमि तक पहुँचाए जाते हैं l पक्षी और जानवर भी उन्हें बोने में सहयोग करते हैं, और नदियाँ पौधों और पेड़ों को बढ़ने में योगदान देती हैं l

सृष्टि ऐसे तरीकों से काम करती है जिसे हम समझ नहीं पाते और नियंत्रित नहीं कर पाते हैं l यीशु के अनुसार, यही सिद्धांत परमेश्वर के राज्य पर भी लागू होता है l “यीशु ने कहा, “परमेश्वर का राज्य ऐसा है, जैसे कोई मनुष्य भूमि पर बीज छीटें . . . वह बीज ऐसे उगे और बढ़े कि वह न जाने” (मरकुस 4:26-27) l परमेश्वर हमारे परिचालन के बिना संसार में असली उपहार के रूप में जीवन और चंगाई लाता है l हम वही करते हैं जो परमेश्वर हमें करने को कहता है, और तब हम जीवन को प्रगट होते देखते हैं l हम जानते हैं कि सब कुछ उसके अनुग्रह से ही आता है l

यह विश्वास करना बहकानेवाली बात है कि हम किसी के हृदय को बदलने के लिए जिम्मेदार हैं या अपने विश्वासयोग्य प्रयासों के परिणाम को निश्चित कर सकते हैं l हालाँकि, हमें उस थकानेवाले तनाव के अधीन रहने की ज़रूरत नहीं है l परमेश्वर हमारे समस्त बीजों को बढ़ाता है l यह सब अनुग्रह है l