वह जो आँधियों को शांत करता है
जिम उन समस्याओं के विषय व्यग्रतापूर्वक साझा कर रहा था जो वह अपने कार्य समूह के साथ सामना कर रहा था : विभाजन, आलोचनात्मक व्यवहार, और ग़लतफ़हमियाँ l एक घंटे तक धीरज से उसकी चिंताओं को सुनने के बाद, मैंने सलाह दिया, “आओ हम यीशु से पूछें कि इस तरह की स्थिति में वह क्या किया होता l” हम पांच मिनट शांति से बैठे रहे l उसके बाद कुछ आश्चर्यजनक हुआ l हम दोनों ने परमेश्वर की शांति को एक कम्बल की नाईं हमें ढकते हुए महसूस किया l हमने और अधिक आराम महसूस किया जब हम उसकी उपस्थिति और मार्गदर्शन को अनुभव किया, और हमने खुद को वापस उन कठिनाईयों में उतरने हेतु निश्चित पाया l
यीशु के एक शिष्य, पतरस, को परमेश्वर की तस्सलीबख्श उपस्थिति की ज़रूरत थी l एक रात वह और अन्य शिष्य नाव से गलील की झील पार कर रहे थे जब एक प्रचंड आँधी उठी l अचानक, यीशु जल पर चलते हुए दिखायी दिया! स्वाभाविक रूप से, यह शिष्यों के लिए आश्चर्य था l उसने उनको आश्वास्त किया : “ढाढ़स बांधो! मैं हूँ, डरो मत!” (मत्ती 14:27) l पतरस ने जल्दबाजी में यीशु से पूछा कि क्या वह भी उसके साथ चल सकता है l वह नाव से उतरकर यीशु की ओर पानी पर चलने लगा l परन्तु खतरनाक और मानवीय असंभव परिस्थिति जिसमें वह था से अवगत होकर, शीघ्र ही फोकस खो दिया, और डूबने लगा l वह चिल्लाया, “हे प्रभु, मुझे बचा!” और यीशु ने प्रेमपूर्वक उसे बचा लिया (पद.30-31) l
पतरस की तरह, हम भी सीख सकते हैं कि परमेश्वर का पुत्र, यीशु, जीवन की आँधियों में भी हमारे साथ है!
प्रेम की लम्बी पहुँच
मेरी ली सोलह फीट, 3,500 पौंड की एक बड़ी सफ़ेद शार्क है जिसे 2012 में समुद्र् विज्ञानियों ने अमरीकी पूर्वी तट से दूर चिन्हित किया था l उसके जल के ऊपर आने पर उपग्रह(sattlelite) उसके पीठ के ऊपर पंख से जुड़े ट्रांसमीटर को ढूँढ लेता है l अगले पांच वर्षों तक शोधकर्ताओं से लेकर लहरों पर बहने वालों(surfers) तक सभी ने तट के आगे पीछे मेरी ली की गतिविधियाँ ऑनलाइन देखी l उसे लगभग 40,000 मील तक देखा गया जबतक कि एक दिन संकेत बंद नहीं हो गया – शायद इसलिए कि ट्रांसमीटर की बैटरी ख़त्म हो गयी थी l
मानव ज्ञान और तकनीक केवल इतनी दूर तक ही पहुँच पाते हैं l मेरी ली का “पीछा करनेवालों” ने उसे खो दिया, परन्तु आप और हम अपने सम्पूर्ण जीवन के दौरान परमेश्वर की अभिज्ञता से बच नहीं सकते हैं l दाऊद की प्रार्थना थी, “मैं तेरी आत्मा से भागकर किधर जाऊँ? या तेरे सामने से किधर भागूँ? यदि मैं आकाश पर चढूँ, तो तू वहां है! यदि मैं अपना बिचौना अचोलोक में बिछाऊँ तो वहां भी तू है!” (भजन 139:7-8) l वह कृतज्ञता से पुकारता है, “यह ज्ञान मेरे लिए बहुत कठिन है” (पद.6) l
परमेश्वर हमसे प्रेम करने के कारण ही हमें जानने का चुनाव करता है l वह केवल हमारे जीवनों की निगरानी ही नहीं करता है परन्तु उनमें निवास करने और उन्हें नया बनाने के लिए पर्याप्त परवाह करता है l उसने यीशु के जीवन, मृत्यु, और पुनरुत्थान द्वारा हमारे निकट आया, कि हम बदले में उसे जाने, और अनंत के लिए उसे प्यार करें l हम परमेश्वर के प्रेम की पहुँच के बाहर कभी नहीं जा सकते हैं l
लोमड़ियाँ पकड़ना
जब पहली बार एक चमगादड़ हमारे घर में घुसा हमने उसे परजीवी कीड़े की तरह सरलता से हटा दिया l परन्तु दूसरी बार रात के समय उसके अन्दर आने के बाद, मैंने इन छोटे प्राणियों के विषय थोड़ी जानकारी प्राप्त की और पता चला कि मनुष्य से मुलाकात के लिए उन्हें बहुत छोटा सा सुराख़ चाहिए l वास्तव में, यदि उनको सिक्के के किनारे के बराबर भी जगह मिल जाती है वे अन्दर घुस आते हैं l
इसलिए मैंने अपनी बन्दुक भरी और लक्ष्य की ओर चल पड़ा l मैं घर में चारों ओर गया और छोटे से छोटा सुराख़ भी बंद कर दिया l
श्रेष्ठगीत 2:15 में, सुलैमान एक और कष्टकर स्तनधारी जीव के विषय बताता है l वह “छोटी लोमड़ियों” के खतरे के विषय लिखता है जो “दाख की बारियों को बिगाड़ती हैं l” प्रतीकात्मक रूप से, वह उन खतरों के विषय बोल रहा है जो किसी सम्बन्ध के बीच आकर उसे बर्बाद कर सकती हैं l अब मुझे चमगादड़-प्रेमियों या लोमड़ी-प्रेमियों को ठेस पहुँचाने का इरादा नहीं है परन्तु चमगादड़ों को घर के बाहर और लोमड़ियों को दाख की बारी से बाहर रखना अपने जीवनों से पाप को दूर रखना है (इफिसियों 5:3) l परमेश्वर के अनुग्रह से पवित्र आत्मा हमारे अन्दर काम करता है इसलिए कि हम “शरीर के अनुसार नहीं वरन् आत्मा के अनुसार” चलें (रोमियों 8:4) l आत्मा की सामर्थ्य से हम पाप की परीक्षा का सामना कर सकते हैं l
परमेश्वर की स्तुति हो कि, मसीह में, अब हम “प्रभु में ज्योति” हैं और इस प्रकार प्रभु को “भानेवाला” जीवन जी सकते हैं (इफिसियों 5:8-10) l आत्मा उन छोटी लोमड़ियों को पकड़ने में हमारी मदद करता है l
खाएँ और दोहराएँ
जब केरी और पॉल का विवाह हुआ, दोनों में से कोई भी भोजन पकाना नहीं जानता था l परन्तु एक रात केरी ने स्पगेटी बनाने कोशिश की – इतनी अधिक मात्रा में बना दी कि उस जोड़े ने अगले दिन फिर उसे रात के भोजन में उसे खाया l तीसरे दिन, पॉल ने भोजन बनाने की पेशकश की, और आशा करते हुए कि पास्ता और सॉस सप्ताहांत तक चलेगा दूना मात्र में बना डाला l हालाँकि, जब वे दोनों उस रात को भोजन करने बैठे, केरी ने स्वीकार किया, “स्पेगेटी से मेरा जी ऊब गया है l”
इस्राएलियों की तरह एक ही भोजन खाने की कल्पना करें – चालीस वर्षों तक l प्रत्येक सुबह वे लोग मीठा “सुपर भोजन” बटोरते थे परमेश्वर जिसका प्रबंध करता था और उसे पकाता भी था (कुछ भी बचता नहीं था यदि अगला दिन सबत नहीं है, निर्गमन 16:23-26) l ओह, अवश्य, वे रचनात्मक हो गए – उसे सेंक लेते और उबाल लेते थे (पद.23) l परन्तु, ओह, उन्होंने मिस्र में जिन भोजन वस्तुओं का आनंद लिया था उसकी कमी महसूस कर रहे थे (पद.3; गिनती 11:1-9), यद्यपि क्रूरता और दासत्व की ऊँची कीमत पर वह पोषण उन्हें मिलता था!
हम भी कभी-कभी कुढ़ते हैं कि अब जीवन वैसा नहीं है जैसा कभी हुआ करता था l या शायद जीवन की वह “एकरूपता” हमारे असंतुष्ट होने का कारण है l परन्तु निर्गमन 16 इस्राएलियों के प्रति परमेश्वर का विश्वासयोग्य प्रबंध बताते हुए उनको हर दिन उसपर भरोसा करने और उसकी देखभाल पर निर्भर रहना सिखाता है l
परमेश्वर हमारी सभी ज़रूरतें पूरी करने की प्रतिज्ञा करता है l वह हमारी इच्छाएँ पूरी करता है और “उत्तम पदार्थों” से हमारी आत्मा को भर देता है (भजन 107:9) l