पास्टर वाट्सन जोन्स को साइकिल चलाना सीखना याद है l उसके पिता छोटे वाट्सन के साथ चल रहे थे जब उसने कुछ लड़कियों को पोर्च पर बैठे देखा l “डैडी, मैं समझ गया!” उसने कहा l उसने नहीं समझा था l उसने बहुत देर से पहचाना कि उसके पिता के स्थिर पकड़ के बिना उसने संतुलन करना नहीं सीखा था l जैसा कि उसकी सोच थी वह बड़ा नहीं हुआ था l

हमारे स्वर्गिक पिता हमारे लिए इच्छा रखते हैं कि हम बड़े हो जाएँ और “एक सिद्ध मनुष्य . . . बन जाएँ और मसीह के पूरे डील-डौल तक . . . बढ़ जाएँ” (इफिसियों 4:13) l लेकिन आध्यात्मिक परिपक्वता प्राकृतिक परिपक्वता से अलग है l माता-पिता अपने बच्चों को आत्मनिर्भर होने के लिए बढाते हैं, उस समय तक जब उनकी आवश्यकता नहीं होती l हमारे दिव्य पिता हमें प्रतिदिन और अधिक उसपर निर्भर होने के लिए हमारी परवरिश करता है l

पतरस अपनी पत्री को इस प्रतिज्ञा के साथ आरम्भ करता है कि “हमारे प्रभु यीशु की पहचान के द्वारा अनुग्रह और शांति तुम में बढती जाए” (2 पतरस 1:2; 3:18) l परिपक्व मसीही यीशु की अपनी ज़रूरत को सदैव महसूस करते हैं l

वाट्सन चेतावनी देते हैं, “हममें से कुछ लोग जीवन के हैंडल से यीशु के हाथों को हटाने में व्यस्त है l” जैसे कि हमें थामने के लिए, हमें उठाने के लिए, और जब हम लड़खड़ाते और विफल होते हैं, तब हमें उसके मजबूत हाथों की ज़रूरत नहीं है l हम मसीह पर अपनी निर्भरता से आगे नहीं बढ़ सकते हैं l हम उसके विषय अपने कृपा और ज्ञान की गहराई में केवल अपने जड़ों को डूबो कर बढ़ते हैं l