पुस्तक मियर ख्रिस्चियेनिटी(Mere Christianity) में सी.एस. लयूईस ने लिखा : “लगभग निश्चित रूप से परमेश्वर समय में नहीं है l उसके जीवन में एक के बाद एक क्षण शामिल नहीं है – साढ़े-दस – और संसार के आरम्भ से हर दूसरा क्षण – हमेशा उसके लिए मौजूद है l” फिर भी इंतज़ार की ऋतुएँ अक्सर अंतहीन महसूस होती हैं l परन्तु जब हम समय के अनंत सृष्टिकर्ता पर भरोसा करना सीखते हैं, हम इस सत्य को स्वीकार कर सकते हैं कि हमारा नाजुक अस्तित्व उसके हाथों में सुरक्षित है l
भजन 102 में विलाप करता हुआ, भजनकार मानता है कि उसके दिन “ढलती हुयी छाया” और मुरझाने वाली घास के समान क्षणभंगुर हैं, जबकि परमेश्वर “पीढ़ी से पीढ़ी तक” बना रहेगा (पद.11-12) l पीड़ा से थकित लेखक, घोषित करता है कि परमेश्वर “सदैव विराजमान रहेगा” (पद.12) l वह पुष्टि करता है कि परमेश्वर की सामर्थ्य और निरंतर करुणा उसके व्यक्तिगत फैलाव/अंतराल के परे पहुँचते हैं (पद.13-18) l यहाँ तक कि उसकी निराशा में भी (पद.19-24), भजनकार अपना ध्यान सृष्टिकर्ता के रूप में परमेश्वर की सामर्थ्य पर लगता है (पद.25) l यद्यपि उसकी रचनाएँ नष्ट हो जाएँगी, वह अनंतकाल के लिए वही रहेगा (पद.26-27) l
जब समय स्थिर अथवा खींचता महसूस हो, तो यह परमेश्वर पर यह आरोप लगाना प्रलोभक है कि वह विलम्ब कर रहा है या अननुक्रियाशील(non-responsive) है l हम अधीर हो सकते हैं और स्थिर अवस्था में रहने से निराश हो सकते हैं l हम भूल सकते हैं कि उसने हमारे लिए जो नियोजित पथ तैयार किया है उसके लिए प्रत्येक फर्शी पत्थर(cobblestone) का चुनाव भी किया है l परन्तु वह हमें अपने लिए प्रबंध करने के लिए नहीं छोड़ेगा l जब हम परमेश्वर की उपस्थिति में विश्वास के द्वारा जीवन जीते हैं, हम वर्तमान में परमेश्वर के साथ चल सकते हैं l
प्रेमी परमेश्वर, हमें जीवन में उपस्थित रहना सिखाएं, कल की चिंता से इनकार करते हुए जब आप अपनी निरंतर उपस्थिति का निश्चय देते हैं l