एक प्रोफेसर के तौर पर, मुझे अक्सर छात्रों द्वारा उनके लिए सिफारिश पत्र लिखने के लिए कहा जाता है – नेतृत्व के पदों, विदेश में अध्ययन कार्यक्रमों, स्नातक स्कूलों और यहाँ तक कि नौकरियों के लिए l प्रत्येक पत्र में, मेरे पास छात्र के चरित्र और योग्यता की प्रशंसा करने का एक मौका होता है l

जब प्राचीन संसार में मसीही यात्रा करते थे, वे अपनी कलीसियाओं से इसी प्रकार की “सिफारिस की पत्रियाँ” लेकर चलते थे l इस तरह के पत्र सुनिश्चित करते थे कि यात्री भाई या बहन की पहुनाई की जाएगी l

जब प्रेरित पौलुस ने कुरिन्थुस की कलीसिया से बात की उसे सिफारिस के पत्र की ज़रूरत नहीं थी – वे उसे जानते थे l इस कलीसिया को लिखी अपनी दूसरी पत्री में, पौलुस ने लिखा कि उसने मन की सच्चाई से, और व्यक्तिगत लाभ के लिए उपदेश नहीं दिया था (2 कुरिन्थियों 2:17) l लेकिन तब उसने सोचा कि क्या उसके पाठक यह सोचेंगे कि उपदेश देने में अपने इरादों का बचाव करने के लिए, वह खुद के लिए एक सिफारिश पत्र लिखने की कोशिश कर रहा था l

उसने कहा, कि उसे इस प्रकार की पत्री की ज़रूरत नहीं थी, क्योंकि कुरिन्थुस की कलीसिया के लोग खुद सिफारिश की पत्री की तरह थे l उनके जीवनों में मसीह का दृश्य कार्य एक पत्री की तरह था “जो स्याही से नहीं परन्तु जीवते परमेश्वर के आत्मा से” लिखा गया था (3:3) l उनका जीवन सच्चे सुसमाचार की गवाही देते थे जो पौलुस ने उन्हें सुनाया था – उनका जीवन सिफारिश की पत्रियाँ थीं जिन्हें “सभी मनुष्य [पहिचान] और [पढ़ सकते थे]” (3:2) l जब हम यीशु का अनुसरण करते हैं, यह हमारे लिए भी सच है – हमारा जीवन सुसमाचार की अच्छाई की कहानी बताता है l