एक क्रिसमस के समय, मेरी दादी ने मुझे सुन्दर मोती का एक हार दिया l वे सुन्दर मोती मेरे गले में चमकते रहे जब तक कि एक दिन धागा टूट नहीं गया l मोती हमारे घर की सख्त लकड़ी के फर्श पर सभी दिशा में उछलने लगे l तख्तों पर रेंगते हुए, मैंने हर एक मोती को बटोर लिया l अपने दम पे, वे छोटे थे l लेकिन ओह, जब वे एक धागे में पिरोए हुए थे, उन्होंने कितना प्रभाव दिखाया था!

कभी-कभी परमेश्वर को मेरी हाँ इतनी बेतुकी लगती है – उन अलग-अलग मोतियों की तरह l मैं यीशु की माँ मरियम के साथ अपनी तुलना करती हूँ, जो बहुत ही आश्चर्जनक रूप से आज्ञाकारी थी l उसने हामी भरी जब उसने मसीहा को अपने कोख में रखने की परमेश्वर की बुलाहट को गले लगाया l “’देख, मैं प्रभु की दासी हूँ, मुझे तेरे वचन के अनुसार हो’” (लूका 1:38) l क्या वह सब समझ पायी थी जो उससे माँगा जाने वाला था? कि आगे चलकर  उसे अपने पुत्र को क्रूस पर छोड़ने की उससे भी बड़ी स्वीकृति?

स्वर्गदूतों और चरवाहों की मुलाकात के बाद, लूका 2:19 हमें बताता है कि मरियम ने “सब बातें अपने मन में रखकर सोचती रही l” रखना अर्थात् “संचित करना” सोचना अर्थात् “एक साथ पिरोना l” यह वाक्यांश मरियम द्वारा लूका 2:51 में दोहराया गया है l वह समय के साथ अनेक हाँ के द्वारा प्रत्युत्तर देने वाली थी l

जैसे मरियम के साथ हुआ, पिता के अनुरोध के प्रति हमारी आज्ञाकारिता की कुंजी अनेक हाँ के साथ एक एक करके मिलेंगी, जब तक कि वे एक समर्पित जीवन का खज़ाना न बन जाए l