“पत्थर का सूप (Stone Soup)” कई संस्करण के साथ एक पुरानी कहानी, एक भूखे आदमी के बारे में बताती है जो एक गाँव में आता है, लेकिन कोई भी उसके लिए थोड़ा सा भोजन भी नहीं देता है l वह एक बर्तन में पानी और एक पत्थर डालकर आग पर चढ़ा देता है l चकित होकर, गाँव वाले उसे देखते हैं जब वह अपने “सूप” को चलाना शुरू करता है l आखिरकार, मिश्रण में डालने के लिए एक दम्पति आलू लाते है; दूसरे के पास कुछ गाजर है l एक व्यक्ति एक प्याज़ डालता है, एक और व्यक्ति मुट्ठी भर जौ डालता है l एक किसान थोड़ा दूध दे देता है l आखिर में, “पत्थर का सूप” स्वादिष्ट सूप बन जाता है l 

यह कहानी साझा करने के महत्त्व को दर्शाती है, लेकिन यह हमें याद दिलाती है कि हमारे पास क्या है, तब भी जब यह महत्वहीन लगता है l युहन्ना 6:1-14 में हमें एक ऐसे लड़के के बारे में पढ़ते हैं, जो एक बड़ी भीड़ में अकेला व्यक्ति प्रतीत होता है, जिसने कुछ खाना लेकर आने के बारे में सोचा था l मसीह के शिष्यों के पास लड़के की पांच रोटियों और दो मछलियों के दोपहर के भोजन का बहुत कम उपयोग था l लेकिन जब यह समर्पित कर दिया गया, तो यीशु ने इसे बढ़ाया और हज़ारों भूखे लोगों को खिलाया!

मैंने एक बार किसी को यह कहते सुना, “आपको पांच हज़ार को नहीं खिलाना है l आपको बस अपनी रोटियाँ और मछलियां पहुंचानी हैं l” जिस तरह यीशु ने एक व्यक्ति के भोजन को लेकर उसे किसी की अपेक्षाओं या कल्पना से कहीं अधिक गुणित कर दिया (पद.11), वह हमारे समर्पित प्रयासों, गुणों, और सेवा को स्वीकार करेगा l वह केवल चाहता है कि जो हमारे पास है हम उसे उसके पास लाने के लिए इच्छुक हो l