मैंने वर्षों में कई पुराने मिट्टी के बरतन प्राप्त किये हैं l मेरा पसंदीदा बर्तन अब्राहम के समय के एक जगह से खुदाई में निकला था l यह मेरे घर की कम से कम एक वस्तु है जिसकी उम्र मुझसे अधिक है! देखने के लिए इसमें ज्यादा कुछ नहीं है : दाग लगा हुआ, फूटा हुआ, खंडित, और जिसे साफ़ करने की ज़रूरत है l मैं इसे याद दिलाने के लिए रखता हूँ कि मैं मिट्टी से बना केवल एक मनुष्य हूँ l हालाँकि नाजुक और कमजोर, मेरे अन्दर  एक अनमोल कीमती खजाना है – यीशु l हमारे पास यह खजाना [यीशु] मिट्टी के बरतनों में रखा है” (2 कुरिन्थियों 4:7) l 

पौलुस जारी रखता है : “हम चारों ओर से क्लेश तो भोगते हैं, पर संकट में नहीं पड़ते; निरुपाय तो हैं, पर निराश नहीं होते; सताए तो जाते हैं, पर त्यागे नहीं जाते; गिराए तो जाते हैं, पर नष्ट नहीं होते” (पद.8-9) l चारों ओर से क्लेश भोगना, निरुपाय होना, सताया जाना, गिराया जाना l ये वे दबाव हैं जिन्हें उस बरतन को बर्दाश्त करना है l संकट में नहीं पड़ते, निराशा नहीं होते, त्यागा नहीं जाते, नष्ट न होते l ये हम में यीशु की प्रतिकार शक्ति के प्रभाव हैं l 

“हम यीशु की मृत्यु को अपनी देह में हर समय लिए फिरते हैं” (पद.10) l यह वह आचरण है जो यीशु की विशेषता है जो हर दिन खुद के प्रति मर गया l और यह वह दृष्टिकोण है जो हमारी पहचान बन सकती है – जो हम में रहता है उसकी पूरी क्षमता पर भरोसा करते हुए, आत्म-प्रयास के प्रति मरने की इच्छा l 

“कि यीशु का जीवन भी हमारी देह में प्रगट हो” (पद.10) l यही परिणाम है : एक पुराने मिट्टी के बर्तन में दिखाई देने वाली यीशु की सुन्दरता l