उसके पिता ने अपनी बीमारी को जादू टोना का दोषी ठहराया l यह एड्स था l जब उनकी मृत्यु हुयी, उनकी बेटी, दस वर्षीय मर्सी, अपनी माँ के और भी करीब हो गयी l लेकिन उसकी माँ भी बीमार थी, और तीन साल बाद उसकी मृत्यु हो गयी l तब से, मर्सी की बहन ने पांच भाई-बहनों की परवरिश की l उसी समय से मर्सी ने अपने दर्द की एक दैनिकी रखना शुरू किया l 

नबी यिर्मयाह ने भी अपने दर्द का रिकॉर्ड रखा l विलापगीत की पुस्तक में उसने बेबीलोन की सेना द्वारा यहूदा पर किये गए अत्याचारों के विषय में लिखा l यिर्मयाह का हृदय विशेष रूप से सबसे कम उम्र के पीड़ितों के लिए दुखी था l उसने विलाप किया, “मेरे लोगों . . . के विनाश के कारण मेरा कलेजा फट गया है . . . क्योंकि बच्चे वरन् दूध-पीते बच्चे भी नगर के चौंकों में मूर्छित होते हैं” (2:11) l यहूदा के लोगों का परमेश्वर को अनदेखा करने का इतिहास था, लेकिन उनके बच्चे भी इसकी कीमत चुका रहे थे l “अपने प्राण अपनी अपनी माता की गोद में छोड़ते हैं” (पद.12) l

हम शायद यिर्मयाह से उम्मीद कर सकते थे कि वह इस तरह की पीड़ा के सामने परमेश्वर को अस्वीकार कर देगा l इसके बजाय, उसने बचे लोगों से आग्रह किया, “प्रभु के सम्मुख अपने मन की बातों को धारा के समान उंडेल . . .  [अपने बालबच्चों के] प्राण के निमित्त आने हाथ उसकी ओर फैला” (पद.19) l 

यह अच्छा है, जैसा कि मर्सी और यिर्मयाह ने किया, हमारे दिलों को परमेश्वर के सामने उंडेलने के लिए l विलाप मानव होने का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है l यहाँ तक कि जब परमेश्वर इस तरह के दर्द की अनुमति देता है, तो वह हमारे साथ दुखी होता है l जैसा कि हम उसके स्वरुप में रचे गए हैं, उसे भी विलाप करना चाहिए!