मैंने अपने माथे को एक आह के साथ अपने हाथ पर झुखा दिया, “मुझे नहीं पता कि मैं इसे कैसे पूरा कर पाऊंगा l” मेरे मित्र की आवाज़ फोन पर चिटकी : “आपको खुद को कुछ श्रेय देना होगा l आप बहुत कुछ कर रहे हैं l” फिर उसने उन चीजों को सूचीबद्ध किया जो मैं करने की कोशिश कर रहा था – एक स्वस्थ्य जीवन शैली को बनाए रखना, काम, ग्रेजुएट स्कूल में अच्छे से पढ़ना, लिखना और बाइबल अध्ययन में भाग लेना l मैं परमेश्वर के लिए इन चीजों को करना चाहता था, लेकिन मैं काम कैसे कर रहा था के बजाय अपने काम पर ध्यान दिया – या शायद मैं बहुत अधिक करने की कोशिश कर रहा था l 

पौलुस ने कुल्लुसे की कलीसिया को याद दिलाया कि उन्हें परमेश्वर को महिमा देने वाले तरीके से जीना था l अंततः, उसने दिन-प्रतिदिन के आधार पर जो विशेष रूप से किया वह उतना महत्वपूण नहीं था जितना कैसे उन्होंने किया l उन्हें अपना काम “बड़ी करुणा, और भलाई, और दीनता, और नम्रता, और सहनशीलता” के साथ करना था (कुलुस्सियों 3:12) “अपराध क्षमा” करना था, और “सब के ऊपर प्रेम” करना था (पद.13-14) और सब काम “प्रभु यीशु के नाम से” करना था (पद.17) l उनके काम मसीह के जीवन शैली से अलग नहीं होने थे l 

हमारे काम मायने रखते हैं, लेकिन हम इसे कैसे, क्यों, और किसके लिए करते हैं मायने रखता है l हर दिन हम एक तनावग्रस्त तरीके से या ऐसे तरीके से काम करने का चुनाव कर सकते हैं जो परमेश्वर का सम्मान करता है और वह अर्थ निकालने का प्रयास करता है जो यीशु हमारे काम को देता है l जब हम बाद की बातों का पीछा करते हैं, हम संतुष्टि पाते हैं l