एक कार दुर्घटना में पत्नी की मृत्यु के बाद वो और मैं प्रत्येक गुरुवार को मुलाकात करते थे l कभी-कभी उसके पास ऐसे प्रश्न होते थे जिसके उत्तर मौजूद नहीं हैं; कभी-कभी वह यादों के साथ होता था जिनके साथ वह फिर से जीना चाहता था l समय के साथ, उसने स्वीकार किया कि भले ही दुर्घटना हमारे टूटे संसार का एक परिणाम था, परमेश्वर इसके मध्य काम कर सकता था l कुछ साल बाद, उसने हमारे चर्च में दुःख और कैसे अच्छी तरह विलाप किया जा सकता है, के बारे में एक कक्षा को पढ़ाया l जल्द ही, वह नुक्सान का अनुभव कर रहे लोगों के लिए हमारा भरोसेमंद मार्गदर्शक बन गया l कभी-कभी जब हमें ऐसा महसूस नहीं होता है कि हमारे पास देने के लिए कुछ है तो परमेश्वर हमारे “अप्रयाप्त” को लेकर “पर्याप्त से अधिक” बना देता है l
यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि वे लोगों को कुछ खाने के लिए दें l उन्होंने विरोध किया कि देने के लिए कुछ नहीं था; यीशु ने उनकी आपूर्ति को गुणित किया और फिर चेलों की ओर मुड़कर उन्हें वह रोटी दिया जैसे कि यह कहना हो, “तुम ही उन्हें खाने को दो” (लूका 9:13) l मसीह आश्चर्यक्रम करेगा, लेकिन वह अक्सर हमें शामिल करने का विकल्प चुनता है l
यीशु हमसे कहते है, “तुम खुद को और जो तुम्हारे पास है मेरे हाथों में सौंप दो l अपना टूटा हुआ जीवन l अपनी कहानी l अपनी दुर्बलता और अपनी विफलता, अपने पीड़ा और अपना दुःख l मेरे हाथों में सौंप दो l तुम आश्चर्यचकित होगे कि मैं इसके साथ क्या कर सकता हूँ l” यीशु जानता है कि हमारी शुन्यता से बाहर, वह पूर्णता ला सकता है l हमारी कमजोरी से, वह अपनी ताकत को प्रकट कर सकता है l
प्रिय यीशु, मेरा “पर्याप्त नहीं” ले लीजिये और इसे “पर्याप्त से अधिक” बना दीजिये l मेरी पीड़ा, मेरी असफलता और मेरी दुर्बलता ले लीजिये, और इसे कुछ अधिक बना दीजिये l