Month: अप्रैल 2020

मार्ग पर रहें

शाम होने लगी थी जब मैं मध्य चीन के पहाड़ों में कटे सोपानी दीवारों की चोटी के साथ-साथ ली बाओ के पीछे चला l मैं इस तरह के मार्ग पर पहले कभी नहीं चला था, और मैं एक से अधिक कदम आगे नहीं देख सकता था या हमारी बायीं ओर की धरती कितनी गहरी थी l मैं घूँट भरा और ली के अति निकट चला l मुझे नहीं पता था कि हम कहाँ जा रहे थे या इसमें कितना समय लगेगा, लेकिन मुझे अपने मित्र पर भरोसा था l

मैं थोमा के रूप में उसी स्थिति में था, शिष्य जो हमेशा आश्वास्त होने की ज़रूरत महसूस करता था l यीशु ने अपने शिष्यों से कहा कि उसे उनके लिए एक जगह तैयार करने के लिए जाना होगा और वे “वहाँ का मार्ग जानते [थे] कि [वह] कहाँ जा रहा [था]” (यूहन्ना 14:4) l थोमा ने एक तार्किक अनुवर्ती प्रश्न पूछा : “हे प्रभु, हम नहीं जानते कि तू कहाँ जा रहा है; तो मार्ग कैसे जानें?” (पद.5) l 

यीशु ने थोमा के संदेह को यह समझाते हुए शांत नहीं किया कि वह उन्हें कहाँ ले जा रहा था l उसने बस अपने शिष्य को आश्वात किया कि वह ही वहाँ का मार्ग है l और इतना ही पर्याप्त था l 

हमारे भविष्य को लेकर भी हमारे मन में प्रश्न हैं l हममें से कोई भी इस बात का विवरण नहीं जानता है कि आगे क्या है l जीवन उन घुमावों से भरा है जिन्हें हम आते देख नहीं सकते हैं l यह ठीक है l यह यीशु को जानने के लिए पर्याप्त है, जो “मार्ग और सत्य और जीवन है” (पद.6) l 

यीशु जानता है कि आगे क्या है l वह केवल चाहता है कि हम उसके अति निकट चलें l 

परमेश्वर और बहुमूल्य है

पिछले दिनों में यीशु के विश्वासियों द्वारा आहात होने के बाद, मेरी माँ ने क्रोध में जवाब दिया जब मैंने अपना जीवन उसे समर्पित किया l “तो, अब आप मेरा न्याय करने जा रहीं हैं?” मैं ऐसा नहीं सोचती हूँ l” उन्होंने फोन रख दिया और पूरे एक वर्ष तक मुझसे बात करने से मना कर दिया l मैं दुखित हुयी, लेकिन अंततः अहसास हुआ कि परमेश्वर के साथ एक रिश्ता मेरे सबसे कीमती रिश्तों में से एक से भी अधिक महत्वपर्ण था l मैंने हर बार उनके लिए प्रार्थना की जब उन्होंने मेरे कॉल्स को अस्वीकार किया और परमेश्वर से आग्रह किया कि मेरी माँ से अधिक प्रेम करने में वह मेरी मदद करे l

अंततः, हमने सुलह कर ली l कुछ महीने बाद उन्होंने कहा, “तुम बदल गयी हो l मुझे लगता है कि मैं यीशु के बारे में अधिक सुनने के लिए तैयार हूँ l” इसके तुरंत बाद, उन्होंने मसीह को स्वीकार कर लिया और अपने बाकी दिनों में परमेश्वर और दूसरों से प्रेम किया l 

उस व्यक्ति की तरह, जो यीशु के पास यह पूछने गया था कि वह अनंत जीवन कैसे प्राप्त कर सकता था, लेकिन उदास होकर लौट गया क्योंकि वह अपनी धन से अलग नहीं होना चाहता था (मरकुस 10:17-22), मैंने उसका अनुसरण करने के लिए सब कुछ त्यागने के विचार के साथ संघर्ष किया l 

चीजों या लोगों को त्यागना सरल नहीं है जिन पर हम परमेश्वर से अधिक भरोसा रखने का विचार रखते हैं (पद.23-25) l लेकिन हम इस संसार में जो कुछ भी त्यागते हैं या खो देते हैं उसका मूल्य यीशु के साथ अनंत जीवन के उपहार से अधिक नहीं होगा l हमारे प्रेमी परमेश्वर ने सभी लोगों को बचाने के लिए स्वेच्छा से खुद को बलिदान किया l वह हमें शांति से ढकता है और हमें अनमोल और सतत प्यार से प्रेम करता है l  

अत्यधिक विशेषता होना

फिल्म देखनेवालों ने एमिली ब्लंट (एक अमेरिकी अभिनेत्री) की खूबसूरत आवाज़ को मैरी पॉपिंस रिटर्न्स(Mary Poppins Returns) में मुख्य कलाकार की भूमिका में सुना l आश्चर्यजनक रूप से, उसके विवाह के चार साल बीतने पर ही उसके पति को उसके मुखर प्रतिभा का पता चला l एक साक्षात्कार में, उसने पहली बार उसको गाते हुए सुनकर, यह सोचते हुए अपने आश्चर्य का खुलासा किया, “तुम मुझे यह कब बताने जा रही थी?”

रिश्तों में हमें अक्सर नयी, कभी-कभी अप्रत्याशित, बारीकियों की जानकारी मिलती है, जो हमें आश्चर्यचकित करते हैं l मरकुस के सुसमाचार में, मसीह के शिष्यों ने आरम्भ में यीशु की अधूरी तस्वीर के साथ शुरुआत की और संघर्ष किया कि वह कौन है l हालाँकि, गलील के झील में आमना-सामना होने पर,यीशु से अपने को और अधिक प्रकट किया – इस समय प्रकृति की शक्ति के ऊपर उसकी सामर्थ्य का विस्तार l 

5,000 से अधिक लोगों की भीड़ को खिलाने के बाद, यीशु ने अपने शिष्यों को गलील के झील में भेजा, जहाँ वे एक भयंकर अंधी में फंस गए l भोर होने से ठीक पहले, शिष्य किसी को पानी पर चलते देख कर घबरा गए l मसीह की परिचित आवाज़ ने शांति के शब्द बोले, “ढाढ़स बांधो : मैं हूँ; डरो मत!” (मरकुस 6:50) l उसके बाद उसने उग्र आंधी को शांत किया l ऐसी महान शक्ति को देखने के बाद, शिष्य “आश्चर्य करने लगे” (6”51) जब वे मसीह की सामर्थ्य के इस अनुभव को पूरी तरह से समझने में संघर्ष करते रहे l 

जब हम अपने जीवन की आँधियों के विषय यीशु और उसकी शक्ति का अनुभव करते हैं, तो हम एक और पूरी तस्वीर प्राप्त करते हैं कि वह कौन है l और हम चकित होते हैं l 

दुःख में सामर्थ्य

1948 में, एक भूमिगत चर्च के पादरी, हार्लेन पोपोव को उनके घर से “थोड़ी पूछताछ” के लिए ले जाया गया l दो सप्ताह बाद, उससे चौबीसों घंटे पूछताछ की गयी और दस दिनों तक भोजन नहीं दिया गया l हर बार उसने जासूस होने से इनकार किया, तो उसे पीटा गया l पोपोव न केवल अपने कठोर बर्ताव से बचे, बल्कि अपने साथी कैदियों को भी यीशु के पास ले आए l अंत में, ग्यारह साल बाद, उन्हें रिहा कर दिया गया और उन्होंने अपने विश्वास को साझा करना जारी रखा जब तक कि, दो साल बाद, वह उस देश को छोड़ कर पुनः अपने परिवार से जुड़ नहीं गए l वे आनेवाले वषों में बंद देशों में बाइबल वितरित करने हेतु प्रचार करते रहे और धन इकठ्ठा करते रहे l 

यूगों से यीशु में अनगिनत विश्वासियों की तरह, पोपोव को उनके विश्वास के कारण सताया गया था l मसीह, अपनी खुद की यातना और मृत्यु और उसके अनुयायियों के समक्ष बाद में आने वाले उत्पीडन से बहुत पहले कहा था, “धन्य हैं वे, जो धर्म के कारण सताए जाते हैं, क्योंकि स्वर्ग का राज्य उन्हीं का है” (मत्ती 5:10) l वह आगे कहता है, “धन्य हो तुम जब मनुष्य मेरे कारण तुम्हारी निंदा करें, और सताएं और झूठ बोल बोलकर तुम्हारे विरोध में सब प्रकार की बुरी बातें कहें” (पद.11) l 

“धन्य”? यीशु का क्या मतलब हो सकता है? वह उसके साथ रिश्ते में मिलनेवाली पूर्णता, आनंद और आराम का जिक्र कर रहा था (पद. 4, 8-10) l पोपोव दृढ़ रहा क्योंकि उसने महसूस किया कि परमेश्वर की उपस्थिति उसके कष्ट में भी शक्ति प्रदान कर रही थी l जब हम परमेश्वर के साथ चलते हैं, तो हमारी परिस्थितिचाहे कुछ भी हो, हम भी उसकी शांति का अनुभव कर सकते हैं l वह हमारे साथ है l