पन्द्रवीं सदी के मठवासी थॉमस ए. केम्पिस, अतिप्रिय उत्कृष्ट साहित्य द इमिटेशन ऑफ़ क्राइस्ट(The Imitation of Christ) में, परीक्षा(tempatation) पर एक परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं जो थोड़ा आश्चर्यचकित कर सकता है l दर्द और कठिनाईयों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय जहाँ परीक्षा ले जा सकती है, वह लिखते हैं, “[परीक्षाएँ] लाभदायक हैं क्योंकि वे हमें नम्र बनाती हैं, वे हमें साफ़ कर सकती हैं, और वे हमें सिखा सकती हैं l” वह समझाते हैं, “जीत की कुंजी सच्ची विनम्रता और धैर्य है; उनमें होकर हम दुश्मन को मात देते हैं l”

नम्रता और धैर्य l यदि में स्वाभाविक रूप से परीक्षा का प्रत्युत्तर देता तो मसीह के साथ मेरा चलना कितना अलग होता! ज्यादातर, मैं शर्म, निराशा, और अधीर प्रयास की प्रतिक्रिया के साथ संघर्ष से बाहर आने का प्रयास करता हूँ l

परन्तु, जैसे कि हम याकूब 1 से सीखते हैं, हम जिन परीक्षाओं और आजमाईशों का सामना करते हैं, वे उद्देश्य के बिना या केवल एक खतरे के रूप में नहीं होते हैं l यद्यपि परीक्षा में हार मानने से दिल टूट सकता है तबाही हो सकती है (पद.13-15), जब हम विनम्र हृदयों से परमेश्वर की ओर मुड़कर उसकी बुद्धिमत्ता और अनुग्रह को खोजते हैं, हम पाते हैं कि वह “बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है” (पद.5) l हममें उसकी सामर्थ्य के द्वारा, हमारी परीक्षाएँ और पाप का सामना करने का संघर्ष धैर्य उत्पन्न करता है, “कि [हम] पूरे और सिद्ध हो जाएँ, और [हम] में किसी बात की घटी न रहे” (पद.4) l

जब हम यीशु में भरोसा करते हैं, भय में जीने का कोई कारण नहीं है l परमेश्वर के प्रिय बच्चों के रूप में, हम शांति पा सकते हैं जब हम उसके प्रेमी बाहों में विश्राम करते हैं, तब भी जब हम परीक्षा का सामना करते हैं l