माइक के अधिकांश सहकर्मी मसीहियत के बारे में कम ही जानते थे, न ही उन्हें इसकी कोई परवाह थी l लेकिन वे जानते थे कि माइक परवाह करता था l ईस्टर के मौसम के पास एक दिन, किसी ने यूँ ही उल्लेख किया कि उन्होंने सुना है कि ईस्टर का फसह से कुछ लेना-देना था और सोच रहे थे कि उसका ईस्टर से क्या सम्बन्ध था l “अरे, माइक!” उसने कहा l “क्या तुम परमेश्वर की इस अच्छी वस्तु के बारे में जानते हो l फसह क्या है?”

इसलिए माइक ने समझाया कि परमेश्वर ने कैसे इस्राएलियों को मिस्र की गुलामी से बाहर निकाला था l उसने उन्हें उन दस विपत्तियों के बारे में बताया, जिनमें हर घर में पहिलौठे की  मृत्यु शामिल थी l उसने बताया कि किस तरह मौत का स्वर्गदूत उन घरों के ऊपर से “गुज़र गया” जिनके चौखटों पर बलिदान किये हुए मेमने का लहू लगा हुआ था l उसके बाद उसने साझा किया कि कैसे यीशु बाद में फसह के मौसम में हमेशा के लिए बलिदान के मेमने के रूप में क्रूस पर चढ़ाया गया था l अचानक माइक ने महसूस किया, अरे, मैं तो साक्षी दे रहा हूँ !

शिष्य पतरस ने परमेश्वर को नहीं जानने वाली एक संस्कृति में एक कलीसिया को सलाह दी l उसने कहा, “जो कोई तुम से तुम्हारी आशा के विषय में कुछ पूछे, उसे उत्तर देने के लिए सर्वदा तैयार रहो” (1 पतरस 3:15) l

इसलिए कि माइक अपने विश्वास के विषय स्पष्ट था, उसे उस विश्वास को स्वाभाविक रूप से साझा करने का अवसर मिला, और वह ऐसा “नम्रता और भय के साथ” कर सका (पद.15) l

हम भी कर सकते हैं l परमेश्वर के पवित्र आत्मा की सहायता से, हम सरल भाषा में समझा सकते हैं कि जीवन में सबसे महत्वपूर्ण क्या है – परमेश्वर के विषय वह “वस्तु l”