सत्रहवीं सदी के दार्शनिक थॉमस होब्स ने सुविदित से लिखा है कि अपनी स्वाभाविक अवस्था में मानव जीवन “अकेला, गरीब, अप्रिय, पशुवत्, और छोटा है l” उन्होंने तर्क दिया कि हमारी प्रवृत्ति दूसरों पर प्रभुत्व प्राप्त करने की होती है; अतः कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए सरकार की स्थापना आवश्यक होगी l

मानवता की धूमिल दृष्टि उस हालात की तरह लगती है जिसका वर्णन यीशु ने किया जब उसने कहा, “जितने मुझे से पहले आए वे सब चोर और डाकू हैं” (यूहन्ना 10:8) l लेकिन यीशु निराशा के मध्य आशा प्रदान करता है l “चोर . . . केवल चोरी करने और घात करने और नष्ट करने को आता है,” लेकिन फिर अच्छी खबर : “मैं इसलिए आया कि वे जीवन पाएं, और बहुतायत से पाएं” (पद.10) l

भजन 23 उस जीवन का एक तरोताज़ा तस्वीर प्रस्तुत करता है जो हमारा चरवाहा हमें देता है l उसमें, हमें “कुछ घटी” नहीं होती (पद.1) और वह हमारे “जी में जी ले आता है” (पद.3) l वह अपनी सिद्ध इच्छा के सही मार्ग में अगुवाई करता है, ताकि जब हम अंधकार भरे समय का भी सामना करते हैं, हमें डरने की ज़रूरत नहीं, क्योंकि वह हमें शांति देने के लिए उपस्थित रहता है (पद.3-4) l वह विपत्ति के समय आशीषों से अभिभूत करता है (पद.5) l उसकी भलाई और करुणा हर दिन हमारे साथ रहती है, और हमें सदा के लिए उसकी उपस्थिति का अवसर मिलता है पद.6) l

काश हम चरवाहे की बुलाहट का उत्तर दें और उस पूरा, भरपूर जीवन का अनुभव करें जो वह हमें देने आया l