Month: जून 2020

लाभदायक परीक्षाएँ

पन्द्रवीं सदी के मठवासी थॉमस ए. केम्पिस, अतिप्रिय उत्कृष्ट साहित्य द इमिटेशन ऑफ़ क्राइस्ट(The Imitation of Christ) में, परीक्षा(tempatation) पर एक परिप्रेक्ष्य प्रदान करते हैं जो थोड़ा आश्चर्यचकित कर सकता है l दर्द और कठिनाईयों पर ध्यान केन्द्रित करने के बजाय जहाँ परीक्षा ले जा सकती है, वह लिखते हैं, “[परीक्षाएँ] लाभदायक हैं क्योंकि वे हमें नम्र बनाती हैं, वे हमें साफ़ कर सकती हैं, और वे हमें सिखा सकती हैं l” वह समझाते हैं, “जीत की कुंजी सच्ची विनम्रता और धैर्य है; उनमें होकर हम दुश्मन को मात देते हैं l”

नम्रता और धैर्य l यदि में स्वाभाविक रूप से परीक्षा का प्रत्युत्तर देता तो मसीह के साथ मेरा चलना कितना अलग होता! ज्यादातर, मैं शर्म, निराशा, और अधीर प्रयास की प्रतिक्रिया के साथ संघर्ष से बाहर आने का प्रयास करता हूँ l

परन्तु, जैसे कि हम याकूब 1 से सीखते हैं, हम जिन परीक्षाओं और आजमाईशों का सामना करते हैं, वे उद्देश्य के बिना या केवल एक खतरे के रूप में नहीं होते हैं l यद्यपि परीक्षा में हार मानने से दिल टूट सकता है तबाही हो सकती है (पद.13-15), जब हम विनम्र हृदयों से परमेश्वर की ओर मुड़कर उसकी बुद्धिमत्ता और अनुग्रह को खोजते हैं, हम पाते हैं कि वह “बिना उलाहना दिए सब को उदारता से देता है” (पद.5) l हममें उसकी सामर्थ्य के द्वारा, हमारी परीक्षाएँ और पाप का सामना करने का संघर्ष धैर्य उत्पन्न करता है, “कि [हम] पूरे और सिद्ध हो जाएँ, और [हम] में किसी बात की घटी न रहे” (पद.4) l

जब हम यीशु में भरोसा करते हैं, भय में जीने का कोई कारण नहीं है l परमेश्वर के प्रिय बच्चों के रूप में, हम शांति पा सकते हैं जब हम उसके प्रेमी बाहों में विश्राम करते हैं, तब भी जब हम परीक्षा का सामना करते हैं l

मेरे पिता की सन्तान

उन्होंने धुंधली तस्वीर को देखा, फिर मुझे देखा, फिर मेरे पिता की ओर देखा, फिर से मेरी ओर देखा, और उसके बाद फिर से मेरे पिता की ओर l उनकी आँखें विस्मय के साथ पूरी तौर से खुल गयीं l “पापा, आप बिलकुल दादा के समान दिखते हो जब वे जवान थे!” मेरे पिता और मैं दांत दिखाते हुए मुस्कुराए क्योंकि यह कुछ ऐसा था जिसे हम लम्बे समय से जानते थे, लेकिन यह हाल ही तक ज्ञात नहीं था जब तक कि मेरे बच्चों को यह पता नहीं चला l जबकि मेरे पिता और मैं अलग-अलग लोग हैं, मुझे देखने के लिए एक बहुत ही वास्तविक अर्थ में मेरे पिता को एक छोटे आदमी के रूप में देखना है : लम्बी दुबली पतली बनावट; काले बालों का पूरा सिर; बाहर की ओर निकली हुई नाक, और अपेक्षा से बड़े कान l नहीं, मैं मेरा पिता नहीं हूँ, परन्तु मैं निश्चित रूप में अपने पिता का बेटा हूँ l

यीशु के एक शिष्य, फिलिप्पुस ने एक बार पुछा, “हे प्रभु, पिता को हमें दिखा दे” (यूहन्ना 14:8) l और जब कि यह पहली बार नहीं था जब यीशु ने संकेत दिया था, उसकी प्रतिक्रिया अभी भी उसके ठहरने का कारण थी : “जिसने मुझे देखा है उसने पिता को देखा है” (यूहन्ना 14:9) l अपने पिता और मेरे बीच शारीरिक समानता के विपरीत, जो यीशु यहाँ कहता है वह क्रांतिकारी है : “क्या तू विश्वास नहीं करता कि मैं पिता में हूँ और पिता मुझ में है?” (पद.10) l उसका बिलकुल वही तत्व और चरित्र उसके पिता के समान ही था l

उस क्षण यीशु अपने प्रिय शिष्यों और हम सब से बहुत ही स्पष्ट बोल रहा था : यदि तुम जानना चाहते हैं कि परमेश्वर कैसा है, मुझे देखो l

पवित्र सहभागिता

हमारे स्कूली मित्रों के समूह ने एक सुन्दर झील के किनारे पर एक साथ लम्बे सप्ताहांत के लिए पुनर्मिलन किया l दिन पानी में खेलने और भोजन साझा करने में बिताए जाते थे, लेकिन मेरे लिए शाम के समय की बातचीत सबसे कीमती थी l जैसे जैसे शाम होती थी, हमारे हृदय असामान्य गहराई और भेद्यता के साथ एक-दूसरे के लिए खुलते थे, लड़खड़ाते हुए विवाह का दर्द और उसके बाद का आघात जो हमारे कुछ बच्चे सहन कर रहे थे l अपनी वास्तविकताओं के अधूरेपन को छिपाए बिना, हमने ऐसे चरम कठिनाइयों के दौरान एक दूसरे को परमेश्वर और उसकी विश्वासयोग्यता की ओर इंगित किया l

मैं उन रातों को को उसके सदृश देखता हूँ जो परमेश्वर का अभिप्राय था जब उसने अपने लोगों को हर वर्ष झोपड़ियों के पर्व के लिए इकठ्ठा होने का निर्देश दिया था l अन्य पर्वों की तरह यह पर्व, इस्राएलियों से यरूशलेम जाने की मांग करती थी l एक बार उनके पहुँचने एक बाद, परमेश्वर ने अपने लोगों को आराधना में एक साथ इकठा होने और पर्व के दौरान – लगभग एक सप्ताह “परिश्रम का कोई काम न [करने] (लैव्यव्यवस्था 23:35) का निर्देश दिया था l झोपड़ियों का पर्व परमेश्वर के प्रावधान का और मिस्र को छोड़ने के बाद जंगल में बिताए गए उनके समय का उत्सव मनाना था (पद.42-43) l

इस सभा ने परमेश्वर के लोगों के रूप में इस्राएलियों की पहचान को मजबूत किया और उनकी सामूहिक और व्यक्तिगत कठिनाइयों के बावजूद उसकी अच्छाई को प्रमाणित किया l जब हम उन लोगों के साथ इकठ्ठा होते हैं जो परमेश्वर के प्रावधान और प्रबंध को हमारे जीवनों में स्मरण करना पसंद करते हैं, तो हम भी विशवास में मजबूत होते हैं l

क्षमा करने के लिए चुने गए

जनवरी 23, 1999 को ग्रैहम स्टेंस और उनके दो छोटे बेटे फिलिप और टिमोथी को, उनकी जीप में जहाँ वे सो रहे थे, आग लगाकर जला दिया गया था l उस समय तक भारत के ओडिशा में गरीब कुष्ठ रोगियों के बीच उनकी समर्पित सेवा के विषय बाहरी संसार बहुत कम जानता था l इस तरह की त्रासदी के बीच, उनकी पत्नी ग्लेडिस और बेटी एस्तर ने सबको चकित कर दिया l उन्होंने नफरत से नहीं बल्कि क्षमा के साथ प्रत्युत्तर देने का चुनाव किया l

बराह वर्षों के बाद जब मुक़दमा समाप्त हुआ, तो ग्लेडिस ने एक ब्यान जारी किया जिसमें कहा गया था कि “मैंने हत्यारों को माफ़ कर दिया है और मुझे उनके खिलाफ कोई कड़वाहट नहीं है . . . मसीह में परमेश्वर ने मुझे क्षमा कर दिया है और वह अपने अनुयायियों से भी ऐसा ही करने की उम्मीद करता है l” परमेश्वर ने ग्लेडिस को दिखाया कि क्षमा करने की कुंजी यह है कि दूसरों ने हमारे साथ जो किया है उस पर ध्यान केन्द्रित करना बंद करें और यीशु ने हमारे लिए जो किया है उस पर ध्यान केन्द्रित करें l मसीह के सतानेवालों के प्रति उसके शब्द थे “हे पिता, इन्हें क्षमा कर, क्योंकि ये जानते नहीं कि क्या कर रहे हैं” (लूका 23:34) इस प्रकार यीशु की क्षमा के विषय जकर्याह की याजकीय नबूवत पूरा हुआ (1:77) l

जबकि हम में से अधिकांश एक अकल्पनीय त्रासदी को सहन नहीं करेंगे जैसा कि ओडिशा में हुआ, हम में से हर एक के साथ किसी न किसी तरह से अन्याय हुआ है l कोई पति या पत्नी धोखा देती है l कोई बच्चा विद्रोह करता है l कोई कर्मचारी अनुचित व्यवहार करता है l हम किस तरह व्यवहार करते हैं? शायद हम अपने उद्धारकर्ता के आदर्श की ओर देखते हैं l तिरस्कार और क्रूरता के सामने, वह क्षमा करता है l यह यीशु के द्वारा हमारे पापों की क्षमा ही है कि हम, हम लोग, उद्धार पाते हैं, जिसमें दूसरों को क्षमा करने की योग्यता शामिल है l और ग्लेडिस स्टेंस की तरह, हम अपनी कड़वाहट को त्यागकर क्षमा करने के लिए अपने हृदय खोल सकते हैं l