द्वितीय विश्व युद्ध के समाप्त होने के बाद उनतीस वर्षों तक, एक जापानी सैनिक, हीरू ओनोडा जंगल में छिपा रहा, और यह विशवास करने से इनकार कर दिया कि उसके देश ने आत्मसमर्पण कर दिया था l जापानी सैन्य अगुओं ने उसे अमेरिकी और ब्रिटिश सेना की जासूसी करने के आदेश के साथ फिलिपीन्स के एक दूरदराज़ के द्वीप पर भेज दिया था l शांति संधि पर हस्ताक्षर  किये जाने के लम्बे समय बाद और शत्रुता समाप्त होने के बाद भी, बह जंगल में रहा l 1974 में, उसके कमांडिंग ऑफिसर को उसे खोजने और उसे भरोसा दिलाने के लिए कि युद्ध समाप्त हो चूका है उस द्वीप तक यात्रा करनी पड़ी l

तीन दशकों तक, यह व्यक्ति दरिद्र, अलग-थलग जीवन जीया, क्योंकि उसने आत्मसमर्पण करने से इनकार कर दिया था – विश्वास करने से इनकार कर दिया था कि संघर्ष ख़त्म हो चुका था l हम भी उसी प्रकार की गलती कर सकते हैं l पौलुस इस आश्चर्यजनक सत्य की घोषणा करता है कि “हम सब जिन्होंने मसीह यीशु का बप्तिस्मा लिया, उसकी मृत्यु का बप्तिस्मा लिया” (रोमियों 6:3) l क्रूस पर, एक शक्तिशाली, रहस्मय तरीके से, यीशु ने शैतान के झूठ को, मौत के आतंक को और पाप की कठोर पकड़ को मौत के घाट उतार दिया l हालाँकि, हम “पाप के लिए तो [मरे हुए], और “परमेश्वर के लिए जीवित” थे (पद.11), हम अक्सर ऐसे जीवित रहते हैं जैसे कि बुराई अभी भी शक्ति रखती है l हम परीक्षा के सामने हार मान जाते हैं, पाप के बहकावे में आकर परास्त हो जाते हैं l हम झूठ सुनते हैं, यीशु पर भरोसा करने में असफल होते हैं l लेकिन हमें हार नहीं माननी है l हमें झूठे कथा में नहीं जीना है l परमेश्वर के अनुग्रह से हम मसीह की जीत की सच्ची कहानी को अपना सकते हैं l

जबकि हम अभी भी पाप के साथ कुश्ती कर रहे हैं, छुटकारा तब मिलता है जब हम समझते हैं कि यीशु ने पहले ही लड़ाई जीत ली है l हम उस सच्चाई को उसकी शक्ति में जी सकते हैं l