“हम छुट्टी पर जा रहे हैं!” मेरी पत्नी ने उत्साह से हमारे तीन वर्षीय पोते अजय को बताया जब हम अपनी यात्रा के पहले चरण में घर से निकले l छोटे अजय ने उन्हें विचारमग्न ढंग से देखकर कर जवाब दिया, “मैं छुट्टी पर नहीं जा रहा हूँ। मैं एक मिशन पर जा रहा हूँ!”

हमें यकीन नहीं है कि हमारे पोते ने “एक मिशन पर” जाने की अवधारणा को कहां प्राप्त किया,  लेकिन उसकी टिप्पणी ने मुझे विचारने के लिए कुछ दिया, जब हम हवाई अड्डे पर गए : जब मैं इस छुट्टी पर जा रहा हूँ और कुछ दिनों के लिए अवकाश लेता हूँ,  क्या मैं इस बात को ध्यान में रख रहा हूँ कि मैं अभी भी “मिशन पर हूँ” और प्रत्येक क्षण परमेश्वर के साथ और उसके लिए जी सकूँ?  क्या मुझे अपने हर काम में उसकी सेवा करना याद है?

प्रेरित पौलुस ने रोमी साम्राज्य की राजधानी रोम में रहने वाले विश्वासियों को “आशा में आनंदित; क्लेश में स्थिर; प्रार्थना में नित्य” (रोमियों 12:11) लगे रहने के लिए उत्साहित किया l उसका कहना था कि यीशु में हमें अपना जीवन उद्देश्य और उत्साह के साथ जीना है l यहां तक ​​कि सबसे नीरस क्षण नए अर्थ प्राप्त करते हैं जब हम परमेश्वर की ओर आशा से देखते हैं और उसके उद्देश्यों के लिए जीते हैं l

जब हम ट्रेन में अपने-अपने सीटों पर बैठ गए, मैंने प्रार्थना की, “प्रभु, मैं आपका हूँ l इस सैर में जो कुछ आप मेरे लिए रखे हैं, मुझे उसे याद रखने में मदद करें l”

हर दिन उसके साथ एक अनंत महत्वपूर्ण मिशन है!