कुछ महीनों से मैं एक ऐसे युवा के साथ पत्रव्यवहार कर रहा हूं, जो विश्वास के बारे में गहराई से सोच रहा है । एक अवसर पर उसने लिखा, “हम इतिहास के समय पर नन्हा, छोटा,  अतिसूक्ष्म प्रकाश बिंदु से अधिक नहीं हैं । क्या हम मायने रखते हैं?”

इस्राएल का नबी, मूसा, सहमत होगा : “हमारी आयु के वर्ष . . . जल्दी कट [जाते] हैं और हम जाते रहते हैं” (भजन 90:10) l जीवन की लघुता हमें चिंतित कर सकती है और हमें सोचने पर विवश कर सकती है कि क्या हम मायने रखते हैं l

हम मायने रखते हैं l हम इसलिए मायने रखते हैं क्योंकि हमें रचनेवाला परमेश्वर हमसे गहराई से और अनंत रूप से प्यार करता है l इस भजन में, मूसा प्रार्थना करता है, “हमें अपनी करुणा से तृप्त कर (पद.14) । हम इसलिए मायने रखते हैं क्योंकि हम परमेश्वर के लिए मायने रखते हैं ।

हम इसलिए भी मायने रखते हैं क्योंकि हम दूसरों को परमेश्वर का प्यार दिखा सकते हैं । यद्यपि हमारे जीवन छोटे हैं, वे निरर्थक नहीं हैं यदि हम परमेश्वर के प्रेम की विरासत छोड़ते हैं l हम पैसे कमाने और स्टाइल में सेवानिवृत होने के लिए धरती पर नहीं हैं, लेकिन दूसरों को परमेश्वर का प्रेम दिखाकर “उसको दिखाने” के लिए हैं l

और अंततः, हालांकि यहां पृथ्वी पर जीवन क्षणिक है, हम अनंत काल के प्राणी हैं । क्योंकि यीशु मृतकों में से जी उठा, हम हमेशा के लिए जीवित रहेंगे । मूसा का यही मतलब था जब उसने हमें आश्वासन दिया था कि परमेश्वर “भोर को हमें अपनी करुणा से तृप्त [करेगा] l” “उस सुबह” हम जीवित रहने और प्रेम करने और प्रेम किये जाने के लिए जीवित रहेंगे l और अगर इसमें अर्थ नहीं दिखाई देता है, तो मुझे नहीं मालूम किसमें अर्थ दिखाई देगा l