अमेरिका में एक सैन्यकर्मी वाल्टर डिक्सन के पास युद्ध में भाग लेने से पहले पांच दिन का प्रमोदकाल/हनीमून था । एक साल से भी कम समय में, सैनिकों ने उसका जैकेट युद्ध के मैदान में पाया, जिसमें उसकी पत्नी की चिट्ठियाँ थीं । सैन्य अधिकारियों ने उसकी युवा पत्नी को सूचित किया कि उसके पति कार्रवाई में मारे गए हैं । असल में, वह जीवित था और अगले 2.5 साल युद्ध बंदी के रूप में बिताया । हर घंटे, उसने घर जाने की साजिश रची l वह पांच बार बच निकला लेकिन पुनः गिरफ्तार कर लिया गया l अंत में, वह रिहा कर दिया गया । आप ताज्जुब की कल्पना कर सकते हैं जब वह घर लौटा!

परमेश्वर के लोगों को पता था कि गिरफ्तार होना, दूर ले जाया जाना, और घर की चाह क्या होती है । परमेश्वर के खिलाफ विद्रोह के कारण, वे निर्वासित थे । वे हर सुबह लौटने के लिए तरस रहे थे, लेकिन उनके पास खुद को बचाने का कोई रास्ता नहीं था । शुक्र है, परमेश्वर ने वादा किया कि वह उन्हें भुलाया नहीं है l “मुझे उन पर दया आई है, इस कारण मैं उन्हें लौटा [लाऊंगा]” (जकर्याह 10: 6) । वह घर लौटने की उनकी अनवरत पीड़ा को समाप्त करेगा, उनके आग्रह के कारण नहीं, बल्कि अपनी दया के कारण : “मैं सीटी बजाकर उनको इकठ्ठा करूँगा . . [और] वह लौट आएँगे” (पद.8-9) ।

निर्वासन की हमारी भावना हमारे बुरे फैसलों या हमारे नियंत्रण से परे कठिनाइयों के कारण आ सकती है । किसी भी तरह से, परमेश्वर ने हमें भुलाया नहीं है । वह हमारी इच्छा जानता है और हमें बुलाएगा । और यदि हम उत्तर देंगे, तो हम खुद को उसकी ओर लौटते हुए पाएंगे – घर लौटते हुए l