तीन साल का एक लड़का, हाल ही में तैरना सीखा था जब वह अपने दादा के पिछवाड़े के आँगन में एक चालीस फुट गहरे, पत्थर की दीवार वाले कुएं में एक ढके हुए सड़े प्लाईवुड के पुट्ठे से फिसलकर गिर गया । वह दस फीट पानी में तब तक रहने में कामयाब रहा जब तक कि उसके पिता उसे बचाने के लिए नहीं उतरे । अग्निशामकों ने लड़के को निकालने के लिए रस्सियाँ लाईं,  लेकिन पिता अपने बेटे के बारे में इतना चिंतित था कि पहले से निश्चित करने के लिए कि उसका बेटा सुरक्षित है वह फिसलन वाली चट्टानों से नीचे उतर गया l

ओह, एक माता-पिता का प्यार! ओह, वह लंबाई (और गहराई) जहाँ तक हम अपने बच्चों के लिए जाएंगे!

जब प्रेरित यूहन्ना आरम्भिक कलीसिया में विश्वासियों को लिखता हैं जो अपने विश्वास के लिए पैर जमाने के लिए संघर्ष कर रहे थे जब उनके चारोंओर झूठी शिक्षा व्याप्त थी,  तो उसने इन शब्दों को एक जीवन-रक्षक की तरह पहुँचाया : “देखो, पिता ने हम से कैसा प्रेम किया है कि हम परमेश्वर की संतान कहलाएं; और हम हैं भी” (1 यूहन्ना 3:1) l यीशु में विश्वासियों को परमेश्वर की “संतान” संबोधित करना एक अंतरंग और कानूनी नाम-पत्र लगाना था जो उन सभी के लिए वैधता लाया जो उस पर भरोसा करते हैं l

ओह, वह लंबाई और गहराई जहाँ तक परमेश्वर अपने बच्चों के लिए जाएगा!

ऐसे कदम होते हैं जो माता-पिता केवल अपने बच्चे के लिए उठाते हैं – जैसे कि यह पिता जो अपने बेटे को बचाने के लिए कुएँ में उतरता है l और हमारे स्वर्गिक पिता के अंतिम कार्य की तरह, जिसने अपने इकलौते बेटे को हमें अपने हृदय के करीब लाने के लिए भेजा और हमें अपने साथ जीवन देने के लिए किया (पद.5-6) l