1994 में, जब दक्षिण अफ्रीका ने लोकतंत्र के लिए रंगभेद(अनिवार्य नस्लीय अलगाव) द्वारा शासित सरकार को छोड़ा, तो इस मुश्किल सवाल का सामना करना पड़ा कि रंगभेद के तहत किए गए अपराधों को कैसे संबोधित किया जाए l देश के अगुए अतीत को नजरअंदाज नहीं कर सकते थे,  लेकिन केवल दोषियों पर कठोर दंड लगाने से देश के घावों को गहरा करने का जोखिम था l जैसे कि दक्षिण अफ्रीका के पहले अश्वेत एंग्लिकन आर्चबिशप, डेसमंड टूटू ने अपनी पुस्तक नो फ्यूचर विदाउट फॉरगिवनेस(No Future Without Forgiveness) में बताया, “हम बहुत अच्छी तरह से इन्साफ,  सजा देनेवाला न्याय कर सकते थे,  और दक्षिण अफ्रीका राख में पड़ा होता l”  

सत्य और सुलह समिति की स्थापना के माध्यम से,  नए लोकतंत्र ने सत्य,  न्याय, और दया को आगे बढ़ाने का कठिन मार्ग चुना l अपराधों के दोषी लोगों को पुनर्स्थापन का मार्ग दिया गया – यदि वे अपने अपराधों को स्वीकार करने और बहाली/पुननिर्माण के लिए तैयार थे l केवल सच्चाई का सामना करने से ही देश चंगाई पाना आरम्भ कर सकता था l

एक तरह से,  दक्षिण अफ्रीका की दुविधा,  हम सभी के संघर्ष को दर्शाती है l हमें न्याय और दया दोनों का पालन करने के लिए कहा जाता है (मीका 6:8),  लेकिन दया को अक्सर जवाबदेही की कमी के लिए गलत समझा जाता है,  जबकि न्याय का पीछा करना बदला लेने में विकृत हो सकता है l

हमारा एकमात्र अग्रिम मार्ग प्रेम है जो न केवल “बुराई से घृणा [करता है]” (रोमियों 12:9) है बल्कि हमारे “पड़ोसी” (13:10) के परिवर्तन और भलाई के लिए भी तरसता है l मसीह की आत्मा की शक्ति के द्वारा,  हम सीख सकते हैं कि भलाई से बुराई पर काबू पाने का भविष्य क्या है (12:21) ।