जैसा कि मैंने अपने बेटे को उसके गणित के होमवर्क के साथ मदद की, यह स्पष्ट हो गया कि वह उसी अवधारणा से संबंधित कई सवालों को करने के लिए उत्साही से भी कम था l “डैड, मैं समझ गया!” उसने जोर देकर कहा, उम्मीद करते हुए कि मैं उसे उसके सभी काम से स्वतंत्र कर दूँगा l मैंने तब उसे धीरे से समझाया कि एक अवधारणा सिर्फ एक अवधारणा है जब तक हम यह नहीं सीखते कि इसे व्यवहार में कैसे लाया जाए l
पौलुस ने फिलिप्पी में अपने मित्रों को अभ्यास के बारे में लिखा l “जो बातें तुम ने मुझ से सीखीं, और ग्रहण कीं, और सुनीं, और मुझे में देखीं, उन्हें का पालन किया करो” (फिलिप्पियों 4:9) l उसने पाँच बातों का उल्लेख किया है : मेल – जैसे उसने यूओदिया और सुन्तुखे से करने का आग्रह किया (पद.2-3); आनंद – जैसा कि उसने अपने पाठकों को उसे विकसित करने की याद दिलायी (पद.4); कोमलता – जैसा कि उसने इसे संसार से सम्बंधित अपने कामों में उपयोग करने का आग्रह किया (पद.5); प्रार्थना – जैसा कि उसने उनके लिए व्यक्तिगत रूप से कैद में और लेखन में आदर्श प्रस्तुत किया (पद.6-7); और केन्द्रित रहना – जैसा कि उसने कैद में भी दर्शाया था (पद.8) l मेल, आनंद, कोमलता, प्रार्थना, और केन्द्रित रहना – यीशु में विश्वासी होकर जिन बातों को हमें जीने के लिए बुलाया गया है l किसी भी आदत की तरह, इन गुणों को विकसित करने के लिए इनका अभ्यास किया जाना चाहिए l
लेकिन सुसमाचार की खुशखबरी, जैसा कि पौलुस ने पहले ही फिलिप्पियों से कहा था, “यह परमेश्वर ही है जिसने अपनी सुइच्छा निमित्त तुम्हारे मन में इच्छा और काम, दोनों बातों के करने का प्रभाव डाला है” (2:13) l हम कभी भी अपनी शक्ति में अभ्यास नहीं कर रहे हैं l परमेश्वर हमें वही प्रदान करेगा जिसकी हमें आवश्यकता है (4:19) l