दक्षिण अमेरिका के पैराग्वे के एक छोटी सी झुग्गी में l इसके अत्यंत निर्धन ग्रामीण, वहाँ के कचरे के ढेर से वस्तुओं को पुनर्चक्रण करके गुजारा करते हैं l लेकिन इन निराशाजनक परिस्थितियों से कुछ सुंदर उभर कर सामने आया है─एक ऑर्केस्ट्रा(वादक समूह) l
एक वायलिन जिसकी लागत झुग्गी के एक घर से अधिक है, इस ऑर्केस्ट्रा को अपनी कचरा आपूर्ति से अपने वाद्य-यंत्र निर्मित करके, रचनात्मक बनना था l टेलपीस(पिछला भाग) के रूप में मुड़े हुए कांटे के साथ तेल के डिब्बे से वायलिन बनाया जाता है l सैक्सोफोन ड्रेनपाइप्स(निकास नली) से और उसकी चाबी बोतल के ढक्कनों के साथ बनाए गए हैं। ग्नोची रोलर्स(बेलन) से बनी समस्वरण खूटियों(tuning pegs) के साथ सेलो(एक वाद्ययंत्र) को टिन ड्रम से बनाया गया है l इन जुगतों पर बजाया गया मोजार्ट(विशेष प्रकार का संगीत) सुनना एक सुंदर बात है l ऑर्केस्ट्रा अपने युवा सदस्यों के विलक्षणता को ऊँचा करते हुए कई देशों के दौरे कर चुका है l
कचरा भराव क्षेत्र(landfill) से वायलिन l झुग्गियों से संगीत l परमेश्वर जो करता है उसका वह प्रतीक है l जब यशायाह भविष्यवक्ता ईश्वर की नई रचना की कल्पना करता है, तो दरिद्रता-से-सुन्दरता की एक ऐसी ही तस्वीर उभरती है, जिसमें बंजर भूमि खिलते हुए फूलों से भर जाएंगी (यशायाह 35:1-2), मरुभूमि में नदियाँ बहने लगेंगी (पद. 6–7), तलवारें हल के फाल और भाले हँसिया बनेंगी (2:4), और साधनहीन/निर्धन लोग हर्षित गीतों की ध्वनियों पर सम्पूर्ण किये जाएंगे (35:5–6, 10) l
ऑर्केस्ट्रा निदेशक कहते हैं, “दुनिया हमें कचरा भेजती है l” “हम संगीत वापस भेजते हैं l” और जैसा कि वे करते हैं, वे संसार को भविष्य की एक झलक देते हैं, जब परमेश्वर हर आंख से आँसू पोछेगा और गरीबी कभी नहीं रहेगी l