पिछले एक साल में,  कई लेखकों ने विश्वासियों से आग्रह किया है कि वे हमारे विश्वास की “शब्दावली” पर नए सिरे से विचार करें l जैसे, एक लेखक ने,  इस बात पर जोर दिया कि विश्वास के धर्मवैज्ञानिक समृद्ध शब्द भी अपना प्रभाव खो सकते हैं,  जब, अति सुपरिचय और अति उपयोग के कारण,  हम सुसमाचार की गहराई और ईश्वर की आवश्यकता के साथ स्पर्श खो देते हैं l जब ऐसा होता है,  तो उसने सुझाव दिया,  हमें विश्वास की भाषा “आरम्भ से” पुनः सीखने की आवश्यकता है, अपनी मान्यताओं को त्यागकर जब तक कि हम सुसमाचार को पहली बार न देख सकें l

“आरंभ से परमेश्वर की बातें बोलना” सीखने का निमंत्रण मुझे पौलुस की याद दिलाता है,  जिसने “सभी मनुष्यों के लिए सब कुछ [बनकर]”  . . . सुसमाचार के लिए अपना जीवन समर्पित किया” (1 कुरिन्थियों 9:22-23) l उसने कभी नहीं माना कि जो यीशु ने किया था उसे वह सबसे श्रेष्ठ तरीके से संप्रेषित करना जानता था l इसके बजाय,  उसने लगातार प्रार्थना पर भरोसा किया और साथी विश्वासियों से उसके लिए प्रार्थना करने के लिए अनुनय किया─कि सुसमाचार साझा करने में उसे “प्रबल वचन”(इफिसियों 6:19 IBP) मिलने में सहायता मिल सके l

प्रेरित मसीह में प्रत्येक विश्वासी की आवश्यकता को भी जानता था कि वह उसके प्रेम में गहरी जड़ों की आवश्यकता के लिए हर दिन विनम्र और ग्रहणशील बना रहे (3:16–17) l यह तभी संभव है जब हम परमेश्वर के प्रेम में अपनी जड़ें गहरी करते जाते हैं,  प्रत्येक दिन उसके अनुग्रह पर अपनी  निर्भरता के बारे में अधिक जागरूक होते जाते हैं,  कि उसने हमारे लिए किया है उसके विषय अविश्वसनीय समाचार साझा करने के लिए हमें प्रबल शब्द मिल सके l