मैं अपनी आँखें बंद कर सकता हूं और अतीत में उस घर में जा सकता हूँ जहाँ में बड़ा हुआ था l मुझे अपने पिता के साथ तारों को निहारना याद है l हम बारी बारी उनकी दूरबीन से अधखुली आँखों से, प्रज्वलित बिन्दुओं पर ध्यान केन्द्रित करने का प्रयास करते थे जो टिमटिमाते थे ओर चमकते थे l ऊष्मा और अग्नि से उत्पन्न प्रकाश की ये सूक्ष्म बिन्दुएँ, साफ़ और स्याह से काले आकाश में स्पष्ट दिखाई दे रहे थे l 

क्या आप खुद को एक चमकता तारा मानते हैं?  मैं मानव उपलब्धि की ऊंचाइयों तक पहुंचने के बारे में बात नहीं कर रहा हूँ,  लेकिन टूटेपन और बुराई की एक अंधेरे पृष्ठभूमि के खिलाफ स्पष्ट खड़ा होने के बारे में l प्रेरित पौलुस ने फिलिप्पियों के विश्वासियों को बताया कि परमेश्वर उनमें होकर और उनके द्वारा चमकेगा जब वे “जीवन का वचन लिए [रहेंगे]” और न कुड़कुड़ाएंगे और न बहस करेंगे (फिलिप्पियों 2:14–16) l

अन्य विश्वासियों के साथ हमारी एकता और ईश्वर के प्रति हमारी विश्वासयोग्यता हमें संसार  से अलग कर सकती हैं l समस्या यह है कि ये चीजें स्वाभाविक रूप से नहीं आती हैं l हम लगातार आजमाइशों को दूर करने का प्रयास करते हैं ताकि हम ईश्वर के साथ एक करीबी रिश्ता बनाए रख सकें l हम अपने आध्यात्मिक भाइयों और बहनों के साथ सद्भाव रखने के लिए स्वार्थ के खिलाफ कुश्ती करते हैं l

लेकिन फिर भी,  आशा है l प्रत्येक विश्वासी में जीवित रहनेवाला  परमेश्वर का आत्मा हमें आत्म-नियंत्रित,  दयालु, और विश्वासयोग्य रहने के लिए समर्थ करता है (गलतियों 5:22–23) l  जिस तरह हमें अपनी स्वाभाविक क्षमता से परे रहने के लिए कहा गया है,  ईश्वर की अलौकिक मदद यह संभव बनाती है (फिलिप्पियों 2:13) l  यदि प्रत्येक विश्वासी आत्मा की शक्ति के द्वारा एक “एक “चमकता हुआ तारा” बन जाए,  तो जरा सोचिए कि ईश्वर का प्रकाश हमारे साथ अंधेरे को कैसे दूर भगाएगा!