मेरे माता-पिता के पुराने फोटो एल्बम में एक युवा लड़के की तस्वीर है । उसका चेहरा गोल है, चेहरे पर दाने और सीधे बाल । उसे कार्टून पसंद है, कुछ फल नापसंद है, और कुछ अजीब संगीत पसंद है । उसी एल्बम के अंदर एक किशोर की कई तस्वीरें हैं । उसका चेहरा लम्बा है, गोल नहीं; उसके बाल लहरदार है, सीधे नहीं हैं, उसके चेहरे पर दाने नहीं हैं, कुछ फल पसंद है, कार्टून की जगह फिल्में देखता है, और वह कुछ अजीब संगीत सुनना कभी स्वीकार नहीं करेगा । वह लड़का और किशोर थोड़े एक जैसे है । विज्ञान के अनुसार उनकी अलग त्वचा, दांत, खून, और हड्डियाँ हैं । फिर भी वह दोनों मैं ही हूँ । यह मिथ्याभास दार्शनिकों को अचम्भित कर रखा हैं । इसलिए कि हम जीवन भर बदलते है, हमारा सच्चा व्यक्तित्व क्या है?

बाइबल इसका उत्तर देती है । जिस पल से परमेश्वर ने हमें गर्भ में रचना शुरू किया (भजन 139:13-14), हम अपने अद्वितीय रचना में बढ़ते गये । जबकि हम यह कल्पना नहीं कर सकते, कि हम आखिरकार क्या बनेंगे, हम जानते हैं कि यदि हम परमेश्वर की सन्तान है तो अंत में हम यीशु की तरह बनेंगे (1 यूहन्ना 3:2)──हमारा शरीर उसके स्वभाव के साथ, हमारा व्यक्तित्व लेकिन उसका चरित्र, हमारे सभी उपहार चमकते हुए, हमारे सभी पाप मिटे हुए l 

उस दिन तक जब यीशु वापस नहीं आ जाता, हम इस भावी व्यक्तित्व की ओर आकर्षित  किए जा रहे हैं l उसके कार्यों के द्वारा, क्रमिक रूप से, हम उसकी छवि को और अधिक स्पष्ट रूप से प्रतिबिम्बित कर सकते है (2 कुरिन्थियों 3:18) । हम अभी तक जो हमें होना चाहिए नहीं हैं, लेकिन जैसे-जैसे हम उसके सामान होते जाते है, हम अपने सच्चे व्यक्तित्व में ढलते जाते हैं l