टेलिफोन पर एक चिन्तित नागरिक से एक आपातस्थिति की सूचना मिलने के बाद, एक पुलिस ऑफिसर रेल की पटरी के साथ-साथ अपनी गाड़ी चलाते हुए, अपना खोज-दीप(floodlight) अँधेरे में उस समय तक चमकाते हुए आगे बढ़ा, जब तक कि उसने उस वाहन को रेल पटरी के बीच खड़े हुए नहीं देखा l जैसे ही एक ट्रेन कार की तरफ बढ़ी एक नजदीकी कैमरा ने खौफनाक दृश्य को कैद कर लिया । “वह ट्रेन तेजी से आ रही थी,” ऑफिसर ने कहा, “पचास से अस्सी मील प्रति घंटा l” इससे पहले कि ट्रेन उस कार में टक्कर मारती, मात्र कुछ क्षणों में ही बिना किसी संकोच के कार्य करते हुए उसने कार के अन्दर से एक बेहोश व्यक्ति को खींच कर निकाला l

पवित्रशास्त्र परमेश्वर को बचाने वाले के रूप में बताती है──अक्सर उस समय जब सब खोया हुआ लगता है । मिस्र में फंसे हुए और दम घुटनेवाली उत्पीड़न में नष्ट होते हुए,  इस्राएलियों ने वहाँ से बचने की कल्पना भी नहीं की थी । हालाँकि, निर्गमन में हम देखतें हैं कि परमेश्वर ने उन्हें आशा से भरपूर गुंजायमान शब्द बोले : “मैं ने अपनी प्रजा के लोग जो मिस्र में है, उनके दुःख को निश्चय देखा है,” उसने कहा “और उनकी . . . चिल्लाहट . . . भी मैंने सुना है, और उनकी पीड़ा पर मैं ने चित्त लगाया है” (3:7) और परमेश्वर ने केवल देखा ही नहीं──परमेश्वर ने कार्य किया l “मैं उतर आया हूँ कि उन्हें छुडाऊँ” (पद.8) l  परमेश्वर ने इस्राएलियों को दासत्व से बाहर निकाला । यह एक दिव्य बचाव था ।

परमेश्वर का इस्राएलियों को बचाना परमेश्वर के हृदय को प्रकट करता है──और उसकी सामर्थ्य──-हम सब जो ज़रूरतमंद हैं उनकी सहायता करने के लिए l वह हम में से उन लोगों की सहायता करता है जिनका बर्बाद होना निश्चित है जब तक कि ईश्वर हमें बचाने के लिए नहीं आता l यद्यपि हमारी स्थिति खौफनाक या असंभव हो सकती है, हम अपनी आँखें और हृदय ऊपर उठाकर उस पर निगाहें रख सकते हैं जो बचाना चाहता है l