महेश सार्वजनिक रूप से बोलने के डर से निपटने के लिए मेरे पास सलाह लेने आया । दूसरों की तरह, उसका दिल भी तीव्रता से धड़कने लगता था, उसका मुंह चिपचिपा और सुखा लगता था, और उसका चेहरा सुर्ख लाल हो जाता था । लोगों में ग्लोसोफोबिया/भाषणभीति (Glossophobia) सबसे आम सामाजिक डर में से एक है──बहुत से लोग मजाक भी करते हैं कि वे मरने की तुलना में सार्वजनिक रूप से बोलने से अधिक डरते हैं! महेश को अच्छा “प्रदर्शन” न करने के अपने डर पर विजय पाने में मदद करने के लिए, मैंने सुझाव दिया कि वह अपने सन्देश के सार पर ध्यान दे, बजाय इसके कि वह इसे कितनी अच्छी तरह पेश करेगा l 

क्या साझा किया जाएगा उस पर अपना ध्यान केन्द्रित करना, इसे साझा करने की क्षमता के बजाय, दूसरों को परमेश्वर की ओर इशारा करना पौलुस की दृष्टिकोण के समान है l जब उसने कुरिन्थुस की कलीसिया को लिखा, उसने टिप्पणी की कि उसका संदेश और प्रचार “ज्ञान और लुभानेवाली बातें नहीं [थीं]” (1 कुरिन्थियों 2:4) l उसके बजाय उसने पूरी तरह से यीशु मसीह वरन् क्रूस पर चढ़ाए हुए मसीह पर ध्यान केन्द्रित करने की ठान ली थी (पद.2), अपने शब्दों को सशक्त बनाने के लिए पवित्र आत्मा पर भरोसा करना न कि एक वक्ता के रूप में उसकी वाक्पटुता ।

जब हमनें परमेश्वर को व्यक्तिगत् तौर से जान लिया है, तो हम अपने आस पास के लोगों के साथ उसके बारे में साझा करना चाहेंगे l फिर भी हम कभी-कभी उससे कतराते है क्योंकि हम उसे अच्छी तरह से प्रदर्शित करने से डरते हैं──“सही” या भाषणपटु शब्दों के साथ । “क्या” पर ध्यान केन्द्रित करके──परमेश्वर कौन है का सच और उसके अद्भुत कार्य पर──पौलुस की तरह, हम अपने शब्दों को सशक्त करने और भय या अनिच्छा के बिना साझा करने के लिए परमेश्वर पर भरोसा कर सकते हैं l