जब दिव्या घर से बाहर होती है, वह हमेशा दूसरों के सामने मुस्कुराने की कोशिश करती है । यह उसका दूसरे लोगों तक पहुंचने का तरीका है जिन्हें एक मित्रवत चेहरा देखने की जरूरत है । उसे बदले में ज़्यादातर, एक वास्तविक मुस्कान मिलता है । परन्तु एक ऐसे समय में जब दिव्या को चेहरे पर मास्क पहनना पड़ा, उसने यह एहसास किया कि लोग अब उसका मुंह नहीं देख सकते थे, इस प्रकार कोई भी उसकी मुस्कराहट नहीं देख पाता था । यह दुख:द है, उसने सोचा, लेकिन मैं रुकने वाली नहीं l शायद वे मेरे आँखों में देखेंगे कि मैं मुस्कुरा रही हूँ ।

उस विचार के पीछे वास्तव में थोड़ा विज्ञान है । मुंह के कोने के लिए और वह जो आँखों को सिकोड़ती हैं वे मांसपेशियां एक के पीछे एक काम कर सकती हैं l यह डूशेन(Duchenne) मुस्कराहट कहलाता है और इसे “आँखों से मुस्कुराना” वर्णित किया गया है ।

नीतिवचन हमें याद दिलाता है कि “आँखों की चमक से मन को आनंद होता है” और “मन का आनंद अच्छी औषधि है” (15:30; 17:22) । अक्सर, प्रभु के बच्चों की मुस्कुराहट, उस अलौकिक आनंद से उपजती है जो हमारे पास है । यह परमेश्वर से एक उपहार है जो निरंतर हमारे जीवनों में उमंडता है, जब हम उन लोगों को उत्साहित करते हैं जो भारी बोझ उठाकर चल रहे हैं या उनके साथ साझा करते हैं जो अपने जीवन के सवालों के जबाब ढूंढ रहे हैं । यहाँ तक कि जब हम पीड़ा अनुभव करते हैं, तब भी हमारा आनंद चमक सकता है ।

जब जीवन अँधेरामय महसूस होता है, ख़ुशी का चुनाव करें l आपकी मुस्कराहट परमेश्वर के प्रेम और आपके जीवन में उसकी उपस्थिति के प्रकाश को प्रतिबिम्बित करने वाली आशा की एक खिड़की बनने दें l