टेलेमैकुस नाम का एक सन्यासी शांत जीवन व्यतीत करता था, लेकिन चौथी सदी के अंत में उसकी मृत्यु ने संसार को बदल दिया l पूर्व से रोम में आकर, टेलेमैकुस ने पेशेवर लड़ाका रंगशाला (gladiatorial arena) के रक्त खेल में हस्तक्षेप किया l वह रंगशाला की दीवार से कूदकर लड़ाकों को एक दूसरे को मारने से रोकने की कोशिश की l पर क्रोधित भीड़ ने पथराव करके सन्यासी को मार डाला l हालांकि, सम्राट होनोरिअस, टेलेमैकुस के कार्य के द्वारा द्रवित हुआ और 500 वर्षों के ग्लैडिएटर खेलों के अंत का फैसला किया ।

जब पौलुस यीशु को ‘हमारी शांति’ कहता है, तो वह यहूदियों और गैरयहूदियों के बीच के विद्वेश के अंत को दर्शाता है (इफिसियों 2:14) l परमेश्वर के चुने हुए इस्राएली लोग बाकी देशों से अलग थे और कुछ विशेषाधिकारों का आनंद लेते थे l उदाहरण के लिए, जबकि गैरयहूदियों को यरूशलेम के मन्दिर में उपासना करने की अनुमति थी, एक विभाजित करनेवाली दीवार उन्हें बाहरी आँगन तक सीमित रखती थी──उल्लंघन करने पर मृत्युदंड तय थी l यहूदी गैरयहूदियों को अशुद्ध मानते थे, और वे परस्पर शत्रुता अनुभव करते थे l लेकिन  अब, सभी के लिए यीशु की मृत्यु और पुनरुत्थान के द्वारा, यहूदी और गैरयहूदी दोनों ही उसमें विश्वास करने के द्वारा स्वतंत्रापूर्वक परमेश्वर की आराधना कर सकते हैं (पद.18-22) l प्रभु के सामने दोनों बराबर हैं l 

जिस तरह टेलेमैकस ने अपनी मृत्यु के द्वारा योद्धाओं को शांति दी, उसी तरह यीशु सभी के लिए जो उस पर उसकी मृत्यु और पुनरुथान के द्वारा विश्वास करते हैं शांति और मेल को संभव बनाता है l इसलिए यदि, यीशु हमारी शांति है, तो हम अपनी विभिन्नताओं को हमें विभाजित करने न दें l उसने हमें अपनी मृत्यु द्वारा एक किया है l