“तुरंत आ जाइए l हम एक बर्फ के चट्टान से टकरा गए हैं l” ये प्रथम तीन शब्द आर एम एस कारपाथिया(Carpathia) के वायरलेस ऑपरेटर, हेरोल्ड कोट्टम के थे, जो डूबते हुए आर एम एस टाइटैनिक(Titanic) से अप्रैल 15, 1912 को 12.25 बजे सुबह प्राप्त हुए थे l कारपाथिया (Carpathia) तबाही स्थल पर पहुंचकर 706 जीवनों को बचानेवाला पहला जहाज़ होने वाला था l  

कुछ दिनों के बाद अमेरिकी सिनेट की सुनवाई में, कारपाथिया(Carpathia) के कप्तान, आर्थर रोस्ट्रोन ने गवाही दी, “सब कुछ ईश्वरकृत था . . . . l वायरलेस ऑपरेटर उस समय अपने कक्ष में था, कोई भी शासकीय काम बिलकुल नहीं था, लेकिन कपड़े बदलते समय यूँही सुन रहा था . . दस मिनट के भीतर शायद वह सो गया होता, और वह उस सन्देश को नहीं सुना होता l”

सुनना मायने रखता है──विशेषकर परमेश्वर को सुनना l भजन 85 के लेखक, कोरहवंशियों, ने लिखते समय ध्यानपूर्वक आज्ञाकारिता का आग्रह किया, “मैं कान लगाए रहूँगा कि परमेश्वर यहोवा क्या कहता है, वह तो अपनी प्रजा से जो उसके भक्त हैं, शांति की बातें करेगा; परन्तु वे फिरके मुर्खता न करने लगें l निश्चय उसके डरवैयों के उद्धार का समय निकट हैं”(पद.8-9) l उनकी ताड़ना विशेषकर मार्मिक है क्योंकि उनके पूर्वज कोरह ने परमेश्वर के विरुद्ध विद्रोह किया था और बियाबान में नाश हो गए थे (गिनती 16:1-35) l 

जिस रात टाइटैनिक डूबा, एक और जहाज़ नजदीक था, लेकिन वायरलेस ऑपरेटर सो चुका था l यदि वह संकट संकेत सुना होता और भी जानें बच गई होतीं l जब हम परमेश्वर की शिक्षा को सुनकर उसकी आज्ञा मानते हैं, वह जीवन के अत्यधिक अशांत जल में भी होकर जाने में हमारी मदद करेगा l