1830 में स्कॉटिश मिशनरी एलेग्जेंडर डफ की भारत की पहली यात्रा के दौरान, उनका जहाज़ दक्षिण अफ्रीका के तट से दूर एक तूफ़ान से टूट गया l वह और उसके सह यात्री किसी प्रकार एक विरान द्वीप पर अपनी जान बचायी; और कुछ समय बाद जहाज़ के एक कर्मी को डफ की बाइबल मिली जो बहती हुई तट पर आ गई थी l जब वह पुस्तक सूख गई, डफ ने बचे हुए लोगों के समक्ष भजन 107 पढ़ा, और उनको साहस मिला l आखिरकार, बचाए जाने के बाद और एक और बार जहाज़ के नष्ट होने के बाद, डफ भारत पहुँचे l
भजन 107 कुछ एक तरीके बताता है जिससे परमेश्वर ने इस्राएलियों को छुड़ाया था l इसमें शक नहीं कि डफ और उसके सहयात्रियों ने वचन का समर्थन किया और उसमें शांति प्राप्त की : “वह आंधी को शांत कर देता है और तरंगें बैठ जाती हैं l तब वे उनके बैठने से आनंदित होते हैं, और वह उनकी मन चाहे बंदरगाह में पहुँचा देता है” (पद.29-30) l और, इस्राएलियों के समान, उन्होंने भी “यहोवा की करुणा के कारण, और उन आश्चर्यकर्मों के कारण जो वह मनुष्यों के लिए करता है, उसका धन्यवाद (किया)” (पद.31) l
हम नया नियम (मत्ती 8:23-27); मरकुस 4:35-41) में भजन 107:28-30 का सामानांतर देखते हैं l यीशु और उसके शिष्य झील पर एक नाव में थे जब एक प्रचंड आंधी आयी l उसके शिष्य भय में पुकार उठे, और यीशु──देह में परमेश्वर──ने झील को शांत कर दिया l हम साहस न छोड़ें! हमारा सामर्थी परमेश्वर और उद्धारकर्ता हमारी पुकार सुनता और प्रत्युत्तर देता है और हमारे तूफानों के बीच हमें शांति देता है l
कब आपने “तूफ़ान” में परमेश्वर को पुकारा है? परिणाम क्या था?
हे परमेश्वर, मुझे अपने दम पर तूफानों का सामना करने के लिए नहीं छोड़ने के लिए, धन्यवाद l मुझे आपकी ज़रूरत है!