किसान अपने ट्रक में चढ़कर सुबह अपने फसल का निरीक्षण करने गया l जब वह अपनी सम्पत्ति के अंतिम छोर पर पहुँचा, उसका खून खौलने लगा l किसी ने उसके फार्म के एकान्तता का उपयोग──फिर से── अवैध रूप से अपना कूड़ा फेंकने के लिए किया था l 

जब वह अपने ट्रक में बचे हुए भोजन के बैग्स भर रहा था, किसान को एक लिफाफा मिला l उसके ऊपर दोषी का पता अंकित था l यहाँ एक अवसर था जिसे नज़रंदाज़ नहीं किया जा सकता था l उस रात वह दोषी के घर तक अपना ट्रक लेकर गया और केवल उसका नहीं अपना कूड़ा भी वहां फेंक कर आया!

कुछ लोगों का कहना है, बदला लेना मीठा होता है, लेकिन क्या यह सही है? 1 शमूएल 24 में, दाऊद और उसके लोग हत्यारा राजा शाऊल से बचने के लिए एक गुफा में छिपे हुए थे l जब शाऊल भी उसी गुफा में शौच करने गया, तो दाऊद के लोगों ने देखा कि यह अवसर बदला लेने के लिए इतना अच्छा था कि इसे जाने नहीं दिया जाना चाहिए (पद.3-4) l लेकिन दाऊद इस इच्छा के विरुद्ध बदला लेना न चाहा l वह . . . कहने लगा, “यहोवा न करे कि मैं अपने प्रभु से जो यहोवा का अभिषिक्त है, ऐसा काम करूँ” (पद.6) l जब शाऊल को पता चला कि दाऊद ने उसके जीवन को बक्श दिया है, वह शक्की हो गया l “तू मुझ से अधिक धर्मी है,” वह चिल्लाया (पद.17-18) l 

जब हम या हमारे प्रिय लोग अन्याय का सामना करते हैं, दोषी से बदला लेने के अवसर आ सकते हैं l क्या हम ऐसी इच्छा के सामने घुटने टेक देंगे, जैसा कि उस किसान ने किया या दाऊद की तरह उसके विरुद्ध जाएंगे? क्या हम बदला लेने के स्थान पर धार्मिकता का चुनाव करेंगे?