इससे पहले कि वह मुझे देखे, मैं कमरे में निकल गया l मैं छिपने के लिए शर्मिंदा था, लेकिन मैं उसके साथ उस समय पेश नहीं आना चाहता था──या किसी भी समय l मैं उसे डांटना चाहता था, और उसे उसकी औकात बताना चाहता था l यद्यपि मैं उसके अतीत से चिढ़ गया था, यह भी संभव है कि मैंने उसे और अधिक परेशान किया हो! 

यहूदी और सामरी भी आपसी रिश्ते को खराब किया था l मिश्रित मूल के लोग और अपने अपने ईश्वरों की उपासना करने वाले होने के कारण, सामरियों ने──यहूदियों की दृष्टि में──गरिज्जीम पर्वत पर एक प्रतिद्वंदी धर्म आरम्भ करके यहूदी वंशावली और विश्वास को बिगाड़ दिया था (यूहन्ना 4:20) l वास्तव में, यहूदी इतना अधिक सामरियों को तुच्छ जानते थे कि वे अपने देश के अन्दर से सीधे मार्ग लेने के बजाय घूमकर लम्बा रास्ता तय करते थे l   

यीशु ने एक बेहतर मार्ग बताया l वह सभी लोगों के लिए उद्धार लेकर आया, जिसमें सामरी लोग भी शामिल थे l इसलिए वह पापी स्त्री और उसके नगर को जीवन जल देने के लिए सामरिया के बीच में से होकर गया (पद.4-42) l उसके शिष्यों के लिए उसके अंतिम शब्द उसके नमूना का अनुसरण करना था l उन्हें उसका सुसमाचार यरूशलेम से आरंभ करके और सामरिया में फैलते हुए जब तक वे “पृथ्वी के छोर तक” न पहुँच जाएँ तब तक सभी के साथ साझा करना था (प्रेरितों 1:8) l सामरिया अगले भुगौलिक दृश्य से कहीं अधिक था l वह मिशन/उद्देश्य का सबसे पीड़ादायक भाग था l शिष्यों को उन लोगों से प्रेम करने के लिए पूर्वाग्रह के जीवनकालों को दूर करना था, जिन्हें वे पसन्द नहीं करते थे l 

क्या यीशु हमारी शिकायतों से अधिक हमारे लिए मायने रखता है? सुनिश्चित करने का केवल एक ही तरीका है l अपने “सामरी” से प्यार करें l