“तो आप जो कह रहे हैं, यह मेरी गलती नहीं हो सकती l” उस महिला के शब्दों ने मुझे चकित कर दिया l उसके चर्च में एक अतिथि उपदेशक होने के नाते, अब हम विमर्श कर रहे थे कि मैंने उस सुबह क्या साझा किया था l “मुझे एक पुरानी बीमारी है,” उसने समझाया, “और मैं प्रार्थना, उपवास, अपने पापों को कुबूल किया, और बाकी सब कुछ किया जो चंगाई पाने के लिए मुझे करने को कहा गया था l लेकिन मैं अभी भी बीमार हूँ, इसलिए मुझे लगा कि मैं दोषी हूँ l”
मुझे उस महिला के अंगीकार पर दुःख हुआ l अपनी समस्या को ठीक करने के लिए एक आध्यात्मिक “सूत्र” दिए जाने के बाद, जब सूत्र काम नहीं किया, तो उसने खुद को दोषी माना l इससे भी बुरी बात यह है कि पीड़ा के लिए इस सूत्रात्मक तरीके को पीढ़ियों पहले नामंजूर कर दिया गया था l
सीधे शब्दों में कहें, तो यह पुराना सूत्र कहता है कि यदि आप पीड़ा सह रहे है, तो इसका अर्थ है कि आपने पाप किया है l जब अय्यूब ने दुखद रूप से अपने पशुधन, बच्चे, और स्वास्थ्य, खो दिया, उसके मित्रों ने उस सूत्र को उस पर उपयोग किया l “क्या तुझे मालूम है कि कोई निर्दोष भी कभी नष्ट हुआ है?” अय्यूब को दोषी समझकर, एलीपज ने कहा (अय्यूब 4:7) l बिलदद ने अय्यूब को यह भी कहा कि उसके बच्चे इसलिए मर गए क्योंकि उन्होंने पाप किये थे (8:4) l अय्यूब के दुःख के वास्तविक कारण से अज्ञान (1:6-2:10), उन्होंने उसको उसकी पीड़ा के लिए एकतरफा कारणों से संतप्त किया, जिसके लिए बाद में उनको परमेश्वर की ताड़ना मिली (42:7) l
एक पतित संसार में पीड़ा जीवन का एक हिस्सा है l अय्यूब की तरह, यह कई कारणों से हो सकता है जो हम कभी नहीं जान पाएंगे l लेकिन परमेश्वर के पास आपके लिए एक कारण है जो आपके द्वारा सहने वाली पीड़ा के परे जाता है l एकतरफा सूत्रों में पड़कर हताश न हों l
आप “पीड़ा=पाप” सूत्र का और किस तरह उपयोग होते देखते हैं? आपको ऐसा क्यों लगता है कि यह अभी भी इतना अधिक प्रचलित है?
महान वैध, मुझे पीड़ा के समय चंगा करने के लिए शब्द दें, चोट पहुँचाने के लिए नहीं l