जबी शांति ने साझा किया कि कैसे ईश्वर ने उसकी पहचान को उसके प्यारे बच्चे  के रूप में स्वीकार करने में मदद की, उसने हमारी बातचीत में पवित्रशास्त्र को चुना  । मैं मुश्किल से यह पता लगा सकी कि हाई स्कूल के छात्रा ने अपनी बातें कहना बंद कर दिया और ईश्वर के शब्दों को उद्धृत करना शुरू कर दिया । जब मैंने उसे चलती-फिरती बाइबल की तरह चलने के लिए सराहा, तो उसकी भौं में शिकन आ गई  । वह जानबूझकर पवित्रशास्त्र के पदों को कहती नहीं थी । बाइबल के दैनिक पठन के द्वारा, इसमें पायी जाने वाली बुद्धिमत्ता शांति की रोजमर्रा की शब्दावली का एक हिस्सा बन गए थे । उसने ईश्वर की निरंतर उपस्थिति में ख़ुशी जताई और अपने सत्य को दूसरों के साथ साझा करने के लिए हर अवसर का आनंद लिया । लेकिन शांति पहली ऐसी युवती नहीं है जिसका उपयोग ईश्वर ने दूसरों को प्रार्थनापूर्वक, पढ़ने, याद करने और पवित्रशास्त्र को लागू करने के लिए प्रेरित करने के लिए किया है । 

जब प्रेरित पौलुस ने तीमुथियुस को नेतृत्व में कदम रखने के लिए प्रोत्साहित किया, तो उसने इस जवान में भरोसा दर्शाया (1 तीमुथियुस 4:11,16) ।  पौलुस ने स्वीकार किया कि तीमुथियुस बचपन से ही पवित्रशास्त्र में जड़वत था (1 तीमुथियुस 3:15) । पौलुस की तरह, तीमुथियुस को संदेह का सामना करना पड़ा । फिर भी, दोनों लोग ऐसे जीवन जीये जैसे कि वे विश्वास करते थे कि “सम्पूर्ण पवित्रशास्त्र “परमेश्वर की प्रेरणा से रचा गया है ।” उन्होंने माना कि पवित्रशास्त्र “उपदेश, समझाने, और सुधारने, और धर्म की शिक्षा के लिए लाभदायक है, ताकि परमेश्वर का जन सिद्ध बने, और हर एक भले काम के लिए तत्पर हो जाए” (2 तीमुथियुस 3:16-17) । 

जब हम परमेश्वर की बुद्धि को अपने हृदयों में छिपा लेते हैं, तो उसका सत्य और प्रेम स्वाभाविक रूप से हमारी बातचीत में प्रवाहित होता है । हम जहाँ भी जाते हैं ईश्वर की अनंत आशा को साझा करते हुए चलने वाली बाइबल की तरह हो सकते हैं ।