परमेश्वर की इच्छा का अनुसरण करना कभी-कभी कठिन होता है । वह हमसे सही काम करने के लिए कहता है । वह हमें शिकायत  किए  बिना कष्ट सहने के लिए कहता है; ख़राब लोगों से प्यार करना; अपने भीतर की आवाज़ पर ध्यान देना जो कहता है, आप ऐसा नही कर सकते; ऐसे कदम लेना जो हम निःसंदेह नहीं लिए होते । इसलिए, हम दिन भर अपने मन से कहें : “हे मन, उत्साह से सुनो । चुपचाप रहो । यीशु जो आप से करने को कह रहा है वही करें ।”

सचमुच मैं चुपचाप होकर परमेश्वर की ओर मन लगाए हूँ” (भजन 62:1) । “हे मेरे मन, परमेश्वर के सामने चुपचाप रह” (62:5) । ये पद सदृश्य हैं, लेकिन भिन्न । दाऊद अपने मन  के विषय कहता है; उसके बाद मन से कुछ कहता है । “चुपचाप” एक निर्णय को संबोधित करता है, एक शांत मन । “चुपचाप रह” दाऊद के मन को उस निर्णय को याद रखने के लिए उकसाता है । 

दाऊद शांति में रहने का मन बनाता है──परमेश्वर की इच्छा के प्रति शांत समर्पण । यह बुलाहट हमारी भी है, वह चीज़ जिसके लिए हम बनाए गए हैं । हम शांति से रहेंगे जब हम सहमत होंगे : “मेरी नहीं परन्तु तेरी ही इच्छा पूरी हो” (लूका 22:42) । यह हमारा प्रथम और सर्वोच्च बुलाहट है जब हम उसे प्रभु मानते हैं और अपने सबसे गहरे आनंद का श्रोत । “हे मेरे परमेश्वर, मैं तेरी इच्छा पूरी करने से प्रसन्न हूँ” (भजन 40:8) । 

जी हाँ, हमें सदैव परमेश्वर की सहायता मांगनी चाहिए, क्योंकि हमारी “आशा उसी में है” (62:5) । जब हम उसकी सहायता मांगते हैं, वह देता है । परमेश्वर हमसे कोई भी ऐसा काम करने को नहीं देता है जो वह नहीं करेगा या कर नहीं सकता है ।