मेरा 4 वर्ष का पोता मेरी गोदी में बैठकर अपने हाथों से मेरे सिर को थपथपाते हुए, और ध्यान से देखते हुए पूछा, “दादाजी, “आपके बाल कहाँ गए?” “ओह, मैं हँसा, “मैंने इसे वर्षों में खो दिया l” उसका चेहरा चिन्ताशील हो गया : “यह तो बहुत ख़राब है,” उसने प्रतिउत्तर दिया l “मुझे अपने कुछ बाल आपको देना होगा l” 

उसके तरस पर मैं मुस्कुराया और उसे गले लगाने के लिए उसे अपनी और खींचा l बाद में मेरे लिए उसके प्रेम पर विचार करते हुए उस अभिलाषित क्षण ने मुझे परमेश्वर के निस्वार्थ, उदार प्रेम पर विचार करने को विवश किया l   

जी. के चेस्टरटन ने ऐसा लिखा है : “हमने पाप किया है और बूढ़े हो गए हैं, और हमारे पिता हमसे जवान हैं l” इससे उसका तात्पर्य यह था कि “एक प्राचीन युग-पुरुष” (दनिय्येल 7:9. BSI Hindi-C.L) पाप के क्षय से शुद्ध है─परमेश्वर शाश्वत है और हमसे बहुतायत से प्रेम करता है जो कभी भी डिगता या मुरझाता नहीं है l वह पूर्ण रूप से इच्छुक और यशायाह 46 में अपने लोगों से किये गए वादों को पूरी करने में सक्षम है : “तुम्हारे बुढ़ापे में भी मैं वैसा ही बना रहूँगा और तुम्हारे बाल पकने के समय तक तुम्हें उठाए रहूँगा” (पद.4) l 

5 पदों के बाद वह समझाता है, परमेश्वर मैं ही हूँ, दूसरा कोई नहीं” (पद.9) l वह महान “मैं हूँ” (निर्गमन 3:14) हमसे इतना गहरा प्रेम किया कि उसने हमारे पाप का पूर्ण भार उठाने के लिए क्रूस पर मरने की चरमसीमा तक गया, ताकि हम उसकी ओर मुड़ सकें और अपने बोझ से स्वतंत्र होकर सर्वदा उसकी उपासना कर सकें!