एक छोटी बच्ची एक छोटे उथले नाले में उतरी जिस समय उसके पिता उसे देख रहे थे l उसके रबर के जूते घुटनों तक थे l जब वह नाले के बहाव की ओर गयी, जल गहरा हो गया जब तक कि वह उसके जूते के ऊपर तक नहीं पहुँच गया l जब वह अगला कदम बढ़ा न सकी, वह चिल्लायी, “डैडी, मैं फंस गई हूं!” तीन डग पर उसके पिता उसके पास थे, और उसे खींचकर घासदार किनारे पर ला रहे थे l वह हंसी जब जूतों को झटकते समय पानी भूमि पर गिरने लगा l 

जब परमेश्वर ने भजनकार दाऊद को उसके शत्रुओं से बचाया, वह एक क्षण लेकर बैठने, “अपने जूते उतारने” और चैन को अपने प्राण के भीतर बहने दिया। उसने अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक गीत लिखा, “मैं यहोवा को जो स्तुति के योग्य है पुकारूंगा, और अपने शत्रुओं से बचाया जाऊंगा,” उसने कहा (2 शमुएल 22:4)। उसने परमेश्वर की स्तुति अपनी चट्टान, गढ़, ढाल, और शरणस्थान के रूप में किया (पद 2-3), और फिर परमेश्वर के प्रतिउत्तर को काव्य रूप में व्यक्त करता चला : पृथ्वी हिल गयी और डोल उठी l परमेश्वर स्वर्ग को झुकाकर नीचे उतर आया l उसके सम्मुख के तेज से आग के कोयले दहक उठे l यहोवा गरजा, और मुझे गहरे जल में से खींचकर बाहर निकाला” (पद 8,10,13-15,17) l

हो सकता है कि आज आप अपने चारों तरफ विरोध का अहसास कर रहे हैं। हो सकता है कि आप पाप में फंसे हैं जो आपको आत्मिक रूप से आगे बढ़ना कठिन बना रहा है l याद करें कि कैसे अतीत में परमेश्वर ने आपकी मदद की है, और तब उसकी प्रशंसा करते हुए उससे वही काम दुबारा करने के लिए कहे! आपको अपने राज्य में लाकर बचाने के लिए उसको विशिष्ट रूप से धन्यवाद दें (कुलुस्सियों 1:13)।