हेनरी वेड्सवर्थ लॉन्गफेलो की 1863 की कविता पर आधारित, “मैंने क्रिसमस के दिन घंटियाँ सुनी” वास्तव में असामान्य क्रिसमस गीत है। अपेक्षित क्रिसमस आनंद और उल्लास के बजाय, गीत विलाप करता, रोता है, “और मैंने निराशा में सिर झुका लिया/ पृथ्वी पर कोई शांति नहीं है मैंने कहा/ क्योंकि नफरत मजबूत है/ और पृथ्वी पर शांति के गाने मनुष्यों की अच्छी इच्छा का मजाक उड़ाता है/” हालाँकि, यह विलाप आगे आशा में बढ़ता है, हमें आश्वस्त करता है कि “परमेश्वर मरा नहीं है, ना ही वो सोता है/ पृथ्वी पर शांति और मनुष्यों की अच्छी इच्छा के साथ गलत विफल हो जाएगा, सही जीत जाएगा”

विलाप में उठने वाली आशा का प्रतिरूप बाइबल के विलाप गीतों में भी पाया जाता है। जैसे, भजन 43 भजनकार का अपने शत्रु जो उस पर हमला करते हैं और उसका परमेश्वर जो लगता है कि उसे भूल गया है (पद 2) से पुकारने के साथ शुरू होता है (1)। लेकिन भजनकार विलाप में नहीं रहता—वह उस परमेश्वर की ओर देखता है जिसे वह पूरी तरह से नहीं समझता है लेकिन फिर भी उस पर भरोसा करता है, यह गाते हुए, “हे मेरे प्राण, तू क्यों गिरा जाता है? तू अन्दर ही अन्दर क्यों व्याकुल है?  परमेश्‍वर पर भरोसा रख, क्योंकि वह मेरे मुख की चमक और मेरा परमेश्‍वर है; मैं फिर उसका धन्यवाद करूँगा।” (पद 5)।

जीवन विलाप के कारणों से भरा है, और हम सब नियमित रूप से उसका अनुभव करते हैं।

परन्तु, यदि उस विलाप को हम आशा के परमेश्वर की ओर संकेत करने दें, भले ही हम अपने आंसुओं से गाएं-हम खुशी से गा सकते हैं।