वर्षों पहले, मैंने अपनी माँ की देखभाल की थी क्योंकि वह धर्मशाला में थी (गंभीर रूप से बीमार लोगों के लिए एक विशेष अस्पताल)। मैंने उन चार महीनों के लिए परमेश्वर को धन्यवाद दिया कि उसने मुझे उनकी देखभाल करने वाले के रूप में सेवा करने का मौका दिया और उस दुःखी प्रक्रिया में उससे सहायता मांगी। अपनी मिली-जुली भावनाओं से जूझते हुए मुझे अक्सर परमेश्वर की स्तुति करने में संघर्ष होता था। लेकिन जैसे ही मेरी माँ ने अपनी आखिरी सांस ली और मैं बेकाबू होकर रोया, मैंने फुसफुसाया, “हल्लिलूयाह”। कई सालो तक मैं ने खुद को दोषी समझा ऐसे भयानक क्षण में परमेश्वर की स्तुति करने के लिए , जब तक कि मैंने भजन 30 को करीब से नहीं देखा।

“मंदिर के समर्पण के लिए” दाऊद के गीत में, उसने परमेश्वर की विश्वासयोग्यता और दया के लिए उसकी आराधना की (पद. 1-3)। उसने दूसरों को “उसके पवित्र नाम की स्तुति” करने के लिए प्रोत्साहित किया (पद. 4)। तब दाऊद पाता है कि परमेश्वर कठिनाई और आशा को कितनी घनिष्ठता से जोड़ता है (पद. 5)। उसने दुःख और आनन्द के समय को स्वीकार किया, सुरक्षित महसूस करने और निराश होने के समय को स्वीकार किया (पद. 6-7)। मदद के लिए उसकी पुकार परमेश्वर पर भरोसे के साथ बनी रही (पद. 7-10)। दाऊद के रोने और नाचने, शोक और आनंद के क्षणों में उसकी स्तुति की प्रतिध्वनि सुनाई देती है (पद 11)। मानो कष्ट सहने के रहस्य और जटिलता को स्वीकार करते हुए और परमेश्वर की विश्वासयोग्यता पर आशा रखते हुए, दाऊद ने परमेश्वर के प्रति अपनी अंतहीन भक्ति को प्रकट किया (पद. 12)।

दाऊद की तरह, हम गा सकते हैं, “हे मेरे परमेश्वर यहोवा, मैं तेरी स्तुति सदा करता रहूंगा” (पद. 12)। चाहे हम खुश हों या आहत, परमेश्वर हमें उस पर अपना भरोसा रखने में मदद कर सकता है और खुशी के नारे और स्तुति के आँसुओं के साथ उसकी आराधना करने में हमारी अगुवाई कर सकता है।