इतिहास में सबसे शक्तिशाली वक्ता अक्सर वे नेता होते हैं जिन्होंने अपनी आवाज का इस्तेमाल सकारात्मक बदलाव लाने के लिए किया है। फ्रेडरिक डगलस पर विचार करें, जिनके दासता को समाप्त करने  और स्वतंत्रता पर भाषणों ने एक आंदोलन को बढ़ावा दिया, जिससे संयुक्त राज्य अमेरिका में दासता का अंत करने में मदद मिली । अगर उसने चुप रहना चुना होता तो क्या होता?  हम सभी में दूसरों को प्रेरित करने और उनकी मदद करने के लिए अपनी आवाज का उपयोग करने की क्षमता होती है, लेकिन बोलने  का डर हमें शक्तिहीन बना सकता है। ऐसे क्षणों में जब हम इस भय से अभिभूत महसूस करते हैं, हम परमेश्वर की ओर देख सकते हैं, जो हमारे ईश्वरीय ज्ञान और प्रोत्साहन का स्रोत है।

जब परमेश्वर ने यिर्मयाह को अन्यजातियों के लिए भविष्यद्वक्ता होने के लिए बुलाया, तो वह तुरंत अपनी क्षमताओं पर संदेह करने लगा। वह चिल्ला उठा, “मैं तो बोलना भी नहीं जानता, क्योंकि मैं तो लड़का छोटा हूं” (यिर्मयाह 1:6)। लेकिन परमेश्वर यिर्मयाह के डर को उसकी आवाज के द्वारा एक पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए उसकी ईश्वरीय  बुलाहट के रास्ते में नहीं आने देगा। इसके बजाय, उसने भविष्यवक्ता को निर्देश दिया कि वह जो कुछ भी कहे और जो कुछ भी उसने आज्ञा दी है उसे करने के द्वारा केवल परमेश्वर पर भरोसा रखे (पद 7)। यिर्मयाह की पुष्टि करने के अतिरिक्त, उसने उसे समर्थ भी किया। “मैंने अपना वचन तेरे मुंह में डाल दिया है” (पद 9), उसने उसे आश्वासन दिया।

जब हम परमेश्वर से यह दिखाने के लिए कहते हैं कि वह हमें कैसे उपयोग करना चाहता है, तो वह हमें हमारे उद्देश्य को पूरा करने के लिए सामर्थ देगा । उसकी मदद से, हम अपने आस–पास के लोगों पर सकारात्मक प्रभाव डालने के लिए साहसपूर्वक अपनी आवाज़ का उपयोग कर सकते हैं।