रोनित एक धार्मिक गैर मसीही परिवार से आती है। उनकी आत्मिक चर्चाएं बड़ी ही अरुचिकर व औपचारिक होती थी। उसने कहा “मैं सभी प्रार्थनाओं को करती हूं परंतु मुझे [परमेश्वर से] कुछ सुनाई नहीं देता।”

उसने बाइबल पढ़ना आरंभ किया धीरे-धीरे उसका विश्वास यीशु को एक मसीहा मानने की ओर बढ़ा। रोनित निरीक्षण के बारे में बताया कि मैंने अपने हृदय में एक स्पष्ट आवाज को सुना जो मुझसे कह रही थी तुम बहुत कुछ सुन चुकी हो बहुत कुछ देख चुकी हो अब समय आ गया है कि तुम विश्वास करो परंतु उनके समक्ष एक समस्या थी उसके पिता। वह उस क्षण को याद करती है जब उसके पिता ने इसके प्रति अपना रौद्र रूप दिखाया।

जब यीशु इस पृथ्वी पर चलते थे तो उनके पीछे भीड़ चलती थी (लूका 14:25) हमें स्पष्ट रूप से पता नहीं है कि भीड़ क्या ढूंढ रही थी, परंतु यीशु चेलों की तलाश में था । और उसके लिए कीमत चुकानी पड़ती है । “यदि कोई मेरे पास आए, और अपने पिता, माता, पत्नी, बच्‍चों, भाइयों और बहिनों वरन् अपने प्राण को भी अप्रिय न जाने, तो वह मेरा चेला नहीं हो सकता”, यीशु ने कहा (पद 26)। उसने एक गढ़ बनाने के विषय कहानी कही । “पहले बैठकर खर्च न जोड़े….? उसने पूछा (पद 28)। यीशु का मतलब अपने परिवार से घृणा करना नहीं था परंतु यह कहना चाह रहे थे कि इन सबसे बढ़कर हमें उसका चुनाव करना है । उन्होंने कहा, “तुम में से जो कोई अपना सब कुछ त्याग न दे, वह मेरा चेला नहीं हो सकता”(पद 33)।

रोनित अपने परिवार को बहुत प्रेम करती हैं फिर भी उसने कहा चाहे कितनी भी कीमत क्यों ना हो मैंने जान लिया है कि वह योग्य है। यीशु आपका मार्गदर्शन कर रहे हैं तो उनका अनुसरण करने के लिए आपको क्या त्यागने की आवश्यकता हो सकती है?