नौ वर्षीय महेश अपने सबसे अच्छे दोस्त नीलेश के साथ अपने सहपाठी के बर्थडे पार्टी में पहुंचा। हालांकि, जब जन्मदिन के लड़के की मां ने महेश को देखा, तो उन्होंने उसे प्रवेश करने से मना कर दिया। उसने जोर देकर कहा, “पर्याप्त कुर्सियां नहीं हैं l” नीलेश ने अपने दोस्त, जो गरीब दिख रहा था, के लिए जगह बनाने के लिए फर्श पर बैठने की पेशकश की, लेकिन माँ ने मना कर दिया। निराश होकर, नीलेश ने उसके पास अपने उपहार छोड़ दिए और महेश के साथ घर लौट आया । इस अस्वीकृति की चोट ने उसके दिल को दहला दिया।

अब, दशकों बाद, नीलेश एक शिक्षक हैं जो अपनी कक्षा में एक खाली कुर्सी रखते हैं। जब छात्र पूछते हैं क्यों, तो वह समझाते हैं कि यह उसका अनुस्मारक है कि “कक्षा में हमेशा किसी के लिए जगह हो।”

यीशु के स्वागत करने वाले जीवन में सभी लोगों के लिए एक हृदय देखा जा सकता है : “हे सब परिश्रम करनेवालों और बोझ से दबे हुए लोगों, मेरे पास आओ; मैं तुम्हें विश्राम दूँगा” (मत्ती 11:28)। यह निमंत्रण यीशु की सेवकाई के “पहले तो यहूदी,” (रोमियों 1:16) के दायरे के विपरीत प्रतीत हो सकता है। लेकिन उद्धार का उपहार उन सभी लोगों के लिए है जो यीशु में अपना विश्वास रखते हैं। पौलुस ने लिखा, “सब विश्वास करनेवालों के लिये है। क्योंकि कुछ भेद नहीं” (3:22 )।

सभी के लिए मसीह के निमंत्रण पर हम आनंदित होते हैं : “मेरा जूआ अपने ऊपर उठा लो; और मुझ से सीखो, क्योंकि मैं नम्र और मन में दीन हूँ, और तुम अपने मन में विश्राम पाओगे” (मत्ती 11:29)। उसके विश्राम की तलाश करने वाले सभी के लिए, उसका खुला हृदय प्रतीक्षा कर रहा है।