ब्रेन ट्यूमर होने के बाद, क्रिस्टीना कोस्टा ने देखा कि कैंसर का सामना करने के बारे में अधिकतर चर्चाओं में लड़ने की भाषा हावी है l उसने पाया कि यह रूपक जल्दी ही थका देने वाला लगने लगा l वह “अपने शरीर के साथ युद्ध में एक वर्ष से अधिक समय नहीं बिताना चाहती थी l” इसके बजाय, जो उसे सबसे अधिक सहायक लगी वह कृतज्ञता के दैनिक अभ्यास थे—उसकी देखभाल करने वाले पेशेवरों की टीम के लिए और उसके मस्तिष्क और शरीर के उपचार के तरीकों के लिए l उसने प्रत्यक्ष रूप से अनुभव किया कि चाहे संघर्ष कितना भी कठिन क्यों न हो, कृतज्ञता के अभ्यास हमें निराशा से लड़ने में मदद कर सकते हैं और “हमारे दिमाग को लचीला बनाने में मदद कर सकते हैं l”

कोस्टा की सशक्त कहानी ने याद दिलाया कि कृतज्ञता का अभ्यास केवल कुछ ऐसा नहीं है जो विश्वासी कर्तव्य मानकर करते हैं l हालाँकि यह सच है कि ईश्वर हमारी कृतज्ञता का पात्र है, यह हमारे लिए बहुत अच्छा भी है l जब हम अपने हृदय को ऊपर उठाकर कहते हैं, “हे मेरे मन, यहोवा को धन्य कह, और उसके किसी उपकार को न भूलना’ (भजन 103:2), हमें परमेश्वर के अनगिनत तरीकों की याद आती है—हमें क्षमा का आश्वासन देना, हमारे शरीर और हृदय का उपचार, हमें उसकी रचना में “प्रेम और करुणा” और अनगिनत “उत्तम पदार्थों” का अनुभव करने देना (पद.3-5) l 

हालाँकि सभी पीड़ाएँ इस जीवनकाल में पूरी तरह से ठीक नहीं होंगी, हमारे हृदय हमेशा कृतज्ञता से तरोताज़ा हो सकते हैं, क्योंकि ईश्वर का प्रेम “युग-युग” तक . . . [है] (पद.17) l